छत्तीसगढ़ के 36 प्रकार की भाजियां | छत्तीसगढ़ के छत्तीस भाजियों के नाम एवं उनकी विशेषताएं

CG Bhaji Name

धान का कटोरा कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ राज्य हरी-भरी भाजियों का भी गढ़ है। एक समय में प्रदेश में भाजियों की 80 प्रजातियां पाई जाती थीं। (CG Bhaji) इसमें 36 प्रकार की भाजियां ऐसी हैं जिन्हें आज भी बड़े चाव से खा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कृषि वैज्ञानिकों ने शोध में इन भाजियों के तरह-तरह के फायदे भी बताए हैं। CG Bhaji Name List नीचे दिया गया है।

छत्तीसगढ़ की 36 भाजियां इस प्रकार से है

अमारी भाजी, कोचई भाजी, चरौटा, करमत्ता, पोई, लाल भाजी, गोंदली भाजी, पटवा, तिपनिया, मुरई भाजी, बोहार भाजी, गुमी भाजी, भथुआ, मुस्केनी, मुनगा भाजी, केना, चुनचुनिया, मखना भाजी, करेला भाजी, पालक, चौलाई, गोभी भाजी, खेढ़ा भाजी, मेथी, लाल चेच भाजी, सफेद चेचभाजी, चना भाजी, तिवरा, कोईलार, पीपर भाजी, सरसों भाजी, बरबट्टी, कांदा भाजी, बर्रे भाजी, कुरमा और चनौरी।

भाजियों की खासियत

लाल भाजी - चावल के साथ लाल भाजी का स्वाद लजीज लगता है। गर्मी के दिनों में पेट के लिए काफी लाभदायक है।

करमत्ता भाजी - बेसन के साथ बनाओ तो स्वाद आता है। मुंह के छाले को ठीक करता है।

मूनगा भाजी - मूनगा की पत्तियां को ही मूनगा भाजी के नाम से जाना जाता है। आंखों की रोशनी के लिए लाभदायक।

पालक - सामान्यत: पालक में पचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ए और कैल्शियम भी अधिक होता है।

चौलाई - 12 महिनों की भाजी के रूप में पहचाने जाने वाली भाजी है चौलाई। थोड़ा स्वाद मैथी और पालक के बीच का होता है, लेकिन स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक है। रक्त के संचार और धमनियों के विकास में सहायक होती है।

मेथी - मेथी का पराठा खाओ या फिर सब्जी। दाल में स्वाद लाना है तो मैंथी की पत्ती का छौंक लगाओ। इसके अलावा पेट की क्रिमी से लेकर सिर दर्द जैसी आम समस्याओं से मेथी भाजी से निजात दिलाती है।

मुरई भाजी - मूली भाजी ठंड में शरीर के लिए काफी लाभदायक है। इसके अलावा यह चर्म रोग जैसी समस्याओं को भी दूर करती है।

गोंदली भाजी - मेंथी के बाद प्याज की भाजी से भी छौंक खूब लगाया जाता था। इसके अलावा प्याज भाजी काफी कारगर है। पेट में सल्फर, आयरन और विटामिन सी सभी की मात्रा पर्याप्त मात्रा में पहुंचाती है।

चरोटा - समान्यत: पेट दर्द की समस्या में ग्रामीण चरोटा को खाना पसंद करते हैं। स्वाद पनसुत्ते जैसा लेकिन शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। पेचिस हो या फिर पेट का मरोड़ सभी के लिए ये भाजी लाभदायक है।

सरसों भाजी - ठंड की सबसे अच्छी भाजी सरसों। स्वाद में तीखा पन लेकिन लाजवाब। स्वास्थ के लिहाज से ठंड के लिए काफी लाभदायक। इसके अलावा पैर में झिनझिनी, नसों में खिचाव के लिए सरसों की भाजी काभी कारगर है। कारण तेलीय पदार्थ की अधिकता।

भथुआ भाजी - पालक की तरह स्वाद वाली भथुआ काफी स्वास्थवर्धक है। कभी शफैयता बना लो या फिर चने की दाल के साथ मिश्रण से स्वाद और अनोखा हो जाता है। वहीं विटामिन और प्रोटिन की सर्वाधिक रहती है। पैरों के लिगामेंट के लिए फायदेमंद।

खेढ़ा भाजी - सर्दी-जुखाम में खेढ़ा भाजी का पेय पदार्थ पीने से काफी हद तक आराम मिलता है। तासीर गर्म होने के कारण ये ठंड में काफी फायदे मंद है।

कांदा भाजी - बेल के आकार में फलने वाली भाजी को कांदा भाजी के नाम से जाना जाता है। त्वचा संबंधी बीमारी के लिए लाभदायक।

चुनचुनिया भाजी - पचाऊ भाजी चुनचुनिया भाजी। कभी पेट साफ न हो। शरीर भारी लग रहा हो तो इसे खाना प्रदेश के ग्रामीण पसंद करते हैं। जो भी पेट में जमा हो साफ हो जाता है।

गोभी भाजी - गोभी समान्यत: सभी को पसंद आती है लेकिन उसके पत्ते को बहुत ही कम लोगों ने चखा है। विटामिन सी से परिपूर्ण पत्ता शरीर की हड्डियों के विकास और युवा अवस्था में शारीरिक विकास के लिए कारगर है।

चना भाजी - चना की स्वाद सभी को पसंद होता है, लेकिन इसकी पत्ती भी काभी कारगर है। कभी हाजमा खराब हो तो चना भाजी खा हो पेट साफ हो जाएगा।

तिवरा भाजी - प्रदेश की स्थानिय दाल तिवरा खूब खाई जाती है, लेकिन इसकी पत्तियों की भाजी भी खूब पसंद की जाती है। आयरन और कैल्शियम से परिपूर्ण है, लेकिन अधिक मात्रा में खाने से नुकसान करती है।

पटवा भाजी - खट्टी भाजी में दूसरी भाजी। स्वाद भी अनोखा। खासकर इसकी चटनी खूब पसंद की जाती है, लेकिन गर्मी के दिनों में लू से बचाती है।

अमारी भाजी - अमारी भाजी ऐसी भाजी है जो बच्चों को खिलाई जाती है ताकी उनके विकास में कारगर हो।

मखना भाजी - कद्दु के पत्ते की भाजी को ही कुम्हड़ा भाजी कहा जाता है। जिस भी व्यक्ति के बाल झड़ रहे हैं वह इसका सेवन करें तो बाल झड़ना रूक जाएगा।

तिनपनिया - जंगलों में पाई जाने वाली तिपनिया भाजी खूब पसंद की जाती है। शरीर में किसी भी प्रकार का दाद, खुजली हो रही है तो यह लाभदायक है।

चनौरी - खास तरह की भाजी में चनौरी भाजी पाई जाती है। इसे बस्तर के लोग सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। जोड़ के दुखने और दर्द की समस्या के लिए उपयोग की जाती है।

केना - ओड़ीसा और प्रदेश के सीमा रेखा पर इस भाजी को ज्यादा उगाया जाता है। खास बात ये है कि केनी में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो नसों की खिचाव को दूर करते हैं।

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