लोककला एवं संस्कृति - छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक जीवन कला जो कि समाज द्वारा मान्य होते है लोक
संस्कृति कहलाती है। लोककला एवं संस्कृति के अंतर्गत लोकगीत, लोकनृत्य,
छत्तीसगढ़ का त्यौहार एवं पर्व, छत्तीसगढ़ के आभूषण तथा व्यंजन आते है।
लोकगीतों का वर्गीकरण
उत्सव सबंधी गीत - राउत नाचा के दोहे, सुआ गीत, छेर छेरा गीत।
धर्म व पूजा गीत - भोजली गीत, जंवारा गीत, मातासेवा गीत, नागपंचमी गीत, गौरा-गौरी गीत, जस गीत।
संस्कार गीत - विवाह गीत, सोहर गीत, पठौनी गीत।
मनोरंजन गीत - करमा गीत, डंडा गीत, ददरिया गीत।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत
1. पण्डवानी
• रूप - महाभारत कथा का छत्तीसगढ़ी लोकरूप पण्डवानी है।
• कथा - पाण्डवों की कथा का छत्तीसगढ़ी में गायन शैली।
• गीतरूप - झाड़ूराम देवांगन (पंडवानी के पितामह) द्वारा।
• मुख्य नायक - भीम
• मुख्य नायिका - द्रौपदी
• प्रमुख वाद्ययंत्र - गायक स्वयं तंबूरा, खंजरी और करताल (खड़ताल)
बजाता है एवं अन्य के द्वारा तबला, ढोलक, हारमोनियम, बैंजो और मंजीरा से संगत की
जाती है।
• रागी - एक हुंकार भरने वाला रागी होता है। रागी का प्रथम कार्य हुंकारू
भरना होता है यह गायक की कुड़ियों को दोहराता है। रागी तत्कालीन कथा को समकालीन
बनाता हुआ तथा उसे जोड़ता हुआ चलता है इसके लिए वह कथानुसार समकालीन प्रश्न पूछता
है।
• पण्डवानी की शैली दो प्रकार के प्रचलित है -
A. वेदमती शैली - इस शाखा के पण्डवानी कथा गायक शास्त्र सम्मत गायकी करते हैं। ये महाभारत के अनुसार गायकी करते हैं और स्वयं को पंडवानी गायन का मापदंड मानते हैं। ये लोग अपने को पण्डवानी गायक के स्थान पर महाभारत गायक कहते हैं। इन लोगों ने लोक रुचि और समयगत स्वीकृति वाद्यों का प्रयोग अपने गायन के साथ किया है। महाभारत की कथा को छत्तीसगढ़ के लोकगीत के धुनों में बांधा जाता है। इस शैली में वीरासन पर घुटनों के बल बैठकर केवल गायन कार्य होता है।
A. वेदमती शैली - इस शाखा के पण्डवानी कथा गायक शास्त्र सम्मत गायकी करते हैं। ये महाभारत के अनुसार गायकी करते हैं और स्वयं को पंडवानी गायन का मापदंड मानते हैं। ये लोग अपने को पण्डवानी गायक के स्थान पर महाभारत गायक कहते हैं। इन लोगों ने लोक रुचि और समयगत स्वीकृति वाद्यों का प्रयोग अपने गायन के साथ किया है। महाभारत की कथा को छत्तीसगढ़ के लोकगीत के धुनों में बांधा जाता है। इस शैली में वीरासन पर घुटनों के बल बैठकर केवल गायन कार्य होता है।
• वेदमती शैली के प्रमुख कलाकार निम्नलिखित है -
1. रितु वर्मा
2. झाडुराम देवांगन
3. पुनाराम निषाद
4. रेवाराम साहू
5. समप्रिया पूजा निषाद
B. कापालिक शैली - कापालिक शैली गायक गायिका कदमों से चलते फिरते हैं नृत्य करते हैं और कथा विनय के दौरान थिरकते हैं। यहां पर भाव और अभिनय का प्रथम रूप नहीं होता। इसमें गायन एवं नृत्य दोनों होता है कपालशास्त्र वाचक परंपरा पर आधारित होता है।
B. कापालिक शैली - कापालिक शैली गायक गायिका कदमों से चलते फिरते हैं नृत्य करते हैं और कथा विनय के दौरान थिरकते हैं। यहां पर भाव और अभिनय का प्रथम रूप नहीं होता। इसमें गायन एवं नृत्य दोनों होता है कपालशास्त्र वाचक परंपरा पर आधारित होता है।
• वाद्ययंत्र - पठारी, परधान, किंकणी या बाना नामक वाद्य यंत्र बजाते है।
गोगिया परधान किडिंग का वजन कर पंडवानी गायन करते हैं।
• कापालिक शैली के प्रमुख कलाकार निम्नलिखित है -
1. तीजन बाई
2. शांति बाई
3. उषा बारले
2. शांति बाई
3. उषा बारले
4. प्रतिमा बारले
नृत्य से सम्बन्धित लोकगीत
1. सुआ गीत
सुआ गीत दीपावली के पूर्व शुरु होकर दीपावली के अन्तिम दिवस तक चलता है। इसका समापन शिव-गौरा विवाह के पश्चात् होता है। सुआ गीत सुआ नृत्य के समय गायी जाती है। सुआ नृत्य में केवल महिलाएं भाग लेती है। सुआ गीत शिव और गौरी के प्रतीक होते है। सुआ गीत को मुकुटधर पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ का गरबा नृत्य कहा है। इस गीत को इस प्रकार से गाया जाता है - तरि हरि नहा नरि ना ना रे सुअना। यह गीत श्रृंगार प्रधान होता, इसमें कोई भी वाद्ययंत्र नहीं बजाय जाता है। सुआ गीत में किशोरियाँ अपने प्रेमी को सुआ के माध्यम से संदेश भेजती हैं।2. पंथी गीत
पंथी गीत छत्तीसगढ़ अंचल में सतनामी पंथ द्वारा गाया जाने वाला विशेष लोकगीत
है। पंथी नृत्य में नर्तक कलाबाजी करते है। पंथी नृत्य के अंतिम समय में
पिरामिड बनाते है।
पंथी नृत्य को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करने का श्रेय
स्वर्गीय देवदास बंजारे जी को जाता है।
• प्रमुख वाद्ययंत्र - मांदर, झांझ आदि है।
• प्रमुख गीतकार - स्वर्गीय देवदास बंजारे पंथी नृत्य के जनक कहलाते है।
3. मांझी गीत
राज्य के जशपुर क्षेत्र की पहाड़ियों में बसे लोगों द्वारा गाए जाने वाला यह नृत्य-गीत अत्यंत कर्ण-प्रिय होता है।प्रणय से सम्बन्धित लोकगीत
1. ददरिया
ददरिया को छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का राजा कहते है। इसे श्रम गीत भी कहा
जाता है, यह गीत सवाल जवाब शैली पर आधारित है। इस गीत में फसल बोते
समय युवक-युवतियां द्वारा अपने मन की बात को पहुँचाते है। यह गीत
श्रृंगार प्रधान होता है। ददरिया को प्रेम गीत/प्रणय (Love Song) के
रूप में भी जाना जाता है। बैगा जनजाति ददरिया गीत के साथ नृत्य करते
है। ददरिया की स्वीकृति छत्तीसगढ़ी लोक जीवन और साहित्य में प्रेम
काव्य के रूप में हुई है।
• ददरिया गीत के प्रमुख कलाकार निम्नलिखित है -
1. लक्ष्मण मस्तूरिया
2. दिलीप षडंगी
3. केदार यादव
4. शेख हुसैन
2. चंदैनी गायन
चंदैनी गायन छत्तीसगढ़ अंचल में लोरिक चंदा के प्रेम प्रसंग पर
आधारित है। जिस कथा में लोरिक रीवा निवासी एवं चंदा आरंग निवासी है।
• कलाकार - चिन्तादास
• वाद्ययंत्र - टिमकी, ढोलक
• गीत - नृत्य का कथानक लोरिक चंदा है।
• गायन - मुख्य रूप से राऊत जाति के द्वारा
• पार्श्व संगीत - रवान यादव ने लोक नाट्य चंदैनी गोंदा के
पार्श्व संगीत दिया है।
• प्रदर्शन - चंदैनी गोंदा कला प्रदर्शन का संबंध दंतेवाड़ा से
है।
3. भरथरी गीत
यह लोकगीत राजा भरथरी और रानी पिंगला के वैराग्य जीवन पर
आधारित है। भरथरी गायन प्रायः नाथपंथी करते है।
• कलाकार - सुरुजबाई खाण्डे
• वाद्ययंत्र - इकतारा व सारंगी
• नोट - भरथरी 'लोकगीत विधा' के रूप में जाना जाता है।
भरथरी गायक गीत में स्वयं को योगी कहता है।
4. ढोला मारू
यह ढोला और मारू का प्रेम प्रसंग गायन है। किन्तु यह
राजस्थानी लोककला है। इसमें मुख्य पात्र नायक ढोला (नरवर के राजकुमार), नायिका मारू (पुंगल देश की राजकुमारी) एवं खलनायिका रेवा जो की जादूगरनी होती है।
• कलाकार - सुरुजबाई खाण्डे एवं जगन्नाथ कुम्हार।
पर्व एवं त्यौहारों से संबंधित लोकगीत
1. भोजली गीत
भोजली पर्व रक्षा बंधन के दूसरे दिन भादो माह
कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन होता है। भोजली गीत में गंगा का नाम बार-बार आता है। भोजली गीत - आ हो देवी गंगा, ओ देवी लहर तुरंगा इस प्रकार से गाते हैं। भोजली भूमि जल से सम्बंधित गीत है।
बुंदेलखंड और उत्तरप्रदेश क्षेत्र में इसे कजली पर्व के नाम से जाना जाता है। इस भोजली को ही गंगा-देवी व साक्षात् अन्नपूर्णा मानकर माता स्वरूप इनकी पूजा की जाती है।
• विशेष - महिलाएं टोकरी में खाद, मिट्टी रखकर उसमें धान, गेहूँ, जौ या उड़द के थोड़े दाने बो देती हैं। जब इसमें पौधे उग जाते हैं तो इसे भोजली कहा जाता है। इसके अंकुरण से लेकर विसर्जन तक जो गीत गाये जाते हैं, उन्हें भोजली गीत कहा जाता है।
2. जंवारा गीत
चैत्र नवरात्रि के अवसर पर जंवारा गीत गाया जाता है और जंवारा निकाला जाता है। जंवारा गीत में दुर्गा देवी के रूप का नाम बार-बार आता है। जंवारा में बोये जाने वाले बीजों को एक दिन पहले भिगोकर रखा जाता है जिसे बिरही कहते हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन जंवारा बोया जाता है तथा नवमी के दिन इसका विसर्जन किया जाता है। जंवारा गीत इस प्रकार से है -
1. जसगीत (देवीगीत) - देवी पूजन हेतु देवी माता के यशोगान, स्तुति, महत्ता, श्रृंगार तथा उनके भोजन, निवास, वाहन आदि का वर्णन किया जाता है। यह बिरही डालने के दिन से सात दिन तक (सप्तमी) गायी जाती है।
2. पचरा गीत (उल्था गीत) - इस गीत में देवी के वीर भावों का वर्णन मिलता है। यह गीत मध्य लय से प्रारंभ होकर द्रुत लय में पहुंच जाती है। यह नवरात्रि के प्रथम दिवस से लेकर सप्तमी तक गायी जाती है।
3. विसर्जन (उम्हा गीत) - अष्टमी के हवन के उपरांत उम्हा (विसर्जन गीत) गाने की परम्परा है। इन गीतों में देवी की स्तुति तथा उनके प्रति आभार प्रदर्शन, विदाई एवं विसर्जन आदि का उल्लेख मिलता है।
3. गौरा गौरी गीत
यह गीत दिवाली के अवसर पर गाया जाता है जिसका अन्य नाम सुआगीत भी है। यह गीत प्रमुखतः गोंड़ समुदाय के स्त्रियों का गीत है। जिसमें शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर विवाह की रस्म पूरी कर पूजा अर्चना की जाती है। इस गीत का निम्न प्रकार से गायन किया जाता है -
1. गौरा चौरा के नाम से निश्चित स्थान पर गौरा-गौरी की मूर्ति प्रतिष्ठित कर महिलाएँ गौरा जगाने का गीत गाती है।
2. विशेष प्रकार की राग-रागिनी की धुन में मातृ शक्ति की स्तुति को सुनकर श्रोता मुग्ध होकर नाचने लगते हैं, जिसे 'झुपना' कहा जाता है।
3. 'अँखरा' गीत में करूणा की भावना जागती है तो 'कडइया' गीत में नारी शक्ति अर्धांगिनी की महत्ता का बखान किया जाता है।
4. आरंभ में जिस प्रकार देवी-देवताओं को जगाने का गीत गाते हैं, उसी प्रकार विसर्जन के उपरांत सुलाने का गीत गाते हैं।
4. सेवा गीत
नवरात्रि के समय देवी पूजा पर
गाया जाता है।
5. फाग गीत
फाग गीत एक लोकगीत है जिसका
गायन होली के अवसर पर
किया जाता है। इसका गायन फाल्गुन माह
में होली के अवसर में किये जाने के कारण
इसे फाग गीत कहा जाता
है। इस गीत में राधा
कृष्ण जी का वर्णन
किया किया जाता
है।
6. सवनाही गीत
सवनाही गीत सावन के
महीने में गया जाता
है यह वर्षा
ऋतु का
प्रमुख गीत है। सावन माह में जादू
टोना तथा बीमारी से
गांव के लोगों तथा
सुरक्षित रखने के
लिए आषाढ़ माह के
अंतिम रविवार अथवा
सावन माह के प्रथम
रविवार को सवनाही
त्यौहार मनाया जाता
है। इस दिन बैगा केेेेेेेे द्वारा गांव में सवनाही देवी की पूजा की जाती है एवंं घर की दीवारों पर गोबर से आकृतियां बनाई जाती है।
7. मड़ई गीत
यह गीत कार्तिक शुक्ल एकादशी से पुर्णिमा तक राउत
जाति के पुरुषों द्वारा
गाया जाता है। मड़ई मयूर पँख
एवं कौड़ियों से
सजा हुआ बाँस
का स्तंभ होता
है। यह गौ पूजन का त्यौहार है। इस लोक नृत्य का आविर्भाव श्री कृष्ण के गोवर्धन धारण इंद्र का मान - मर्दन के उपरांत गोप ग्वालों के आनंद उत्सव मनाने से माना जाता है।
8. नगमथ
छत्तीसगढ़ में नाग पंचमी में गया जाने वाला गीत है जिसमें नागदेव की पूजा अर्चना की जाती है।
9. डण्डा गीत
डंडा गीत का आयोजन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी) से फाल्गुन पूर्णिमा तक किया जाता है। डंडा गीत छत्तीसगढ़ का रासगीत है जिसमें युवक युवतियां वृताकार हो घूम-घूम कर हाथ में छोटी डंडा लिए नित्य करते हैं। डंडा गीत में पहले देवता का सुमिरन होता है तत्पश्चात गीत की शुरुआत की जाती है।
10. छेरछेरा गीत
यह गीत पौष पूर्णिमा के समय मनाया जाने वाले छेरछेरा पर्व के समय गायी जाती है।
छेरछेरा गीत -
छेरिक छेरा छेर बरकनीन छेर छेरा।
माई कोठी के धान ला हेर हेरा।
11. बारहमासी गीत
इस
गीत
को
गाने
का
कार्यक्रम
जेठ
माह
से
प्रारंभ
होता
है
और
इसमें
ॠतुओं
का
वर्णन
एवं
महिमा
व्यक्त
की
जाती
है।
ऐतिहासिक लोकगीत
1. गोपल्ला गीत
यह
गीत
कल्चुरी शासक कल्याण से
संबंधित
है। इस गीत में गोपालराय मल नमक बहादुर व्यक्ति की वीरता का उल्लेख किया गया है जिन्होंने कल्याण साय को मुगल दरबार की हुजूरी से मुक्ति दिलाई और कल्याण साय के महान मर्तबा को बढ़ाया।
करुणा एवं वेदना से संबंधित लोकगीत
1. नचौनी गीत
नारी
के
विरह
वेदना,
संयोग-वियोग
का
गीत
2. बांस गीत
बांस
गीत
दुख
या
करुण
का
गीत
है
जो
छत्तीसगढ़
में
राउत
जाति
द्वारा
गायी
जाती
है।
बांस
गीत
में
महाभारत
के
पात्र
कर्ण
और
मोरध्वज
व
शीतबसंत
का
वर्णन
होता
है।
बांस
गीत
में
रागी
गायक
और
वादक
तीनों
होते
है। इस गीत में वियोग श्रृंगार की प्रधानता होती है।
•
प्रमुख
कलाकार
-
केजुराम
यादव,
नकुल
यादव।
•
वाद्ययंत्र
-
बाँस
(मोहराली)
3. मृत्यु संस्कार गीत
इस
प्रकार
के
गीत
राज्य
के
कबीर-पंथी
समाज
में
प्रचलित
हैं,
जो
"आत्मा'
को
गुरु
के
बोल
सुनाने
हेतु
गाए
जाते
हैं।
जाति से संबंधित लोकगीत
1. बसदेवा गीत
इस गीत का संबंध श्रवण कुमार से है। पौराणिक कथाओं के अंतर्गत सरवन गाथा श्रवण कुमार पर आधारित है जो अपने अंधे माता-पिता को पावर में बैठकर तीर्थ यात्रा करवाते हैं किंतु दशरथ की बाण से उनकी मृत्यु हो जाती है। इसका गायन बसदेवा जाति के द्वारा किया जाता है इस गीत का उपनाम जय गंगान या हरबोला है।
2. देवार गीत एवं बीरम गीत
यह गीत देवार जाति के लोगो द्वारा भिक्षा मांगते हुए गाया जाता है। देवार छत्तीसगढ़ की भ्रमण शील जाति या धुमन्तु जाति है। कभी इधर तो कभी उधर, इसीलिये शायद इनके गीतों में इतनी रोचकता है, इनके आवाज़ में इतनी जादू है। देवार लोगों के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित है जैसे एक कहानी में कहा जाता है कि देवार जाति के लोग गोंड राजाओ के दरबार में गाया करते थे। किसी कारण वश इन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया था और तबसे धुमन्तु जीवन अपनाकर कभी इधर तो कभी उधर दुमते रहते है। जिन्दगी को और नज़दीक से देखते हुये गीत रचते है, नृत्य करते है। उनके गीतों में संधर्ष है, आनन्द है, मस्ती है।
देवार जाति की स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले गीत को बीरम गीत के नाम से जानते हैं इस गीत के दौरान बीच-बीच में स्त्रियां चूड़ियां खनकाती हैं। देवार जाति के घुमक्कड़ स्वभाव के कारण इसमें विभिन्न क्षेत्रों के गीत होते हैं जैसे - चंदा रउतइन, नगेसर कइना, दसमत कइना, सीताराम नायक। इसके प्रमुख गीतकार रेखा सिंह एवं बद्रीसिंह कटारिया है।
• वाद्ययंत्र - रुजू, ठुंगरु, मांदर है।
छत्तीसगढ़ के जन्म संस्कार गीत
1. साधौरी गीत
स्वस्थ्य संतान के मनोकामना हेतु, जब स्त्री प्रथम गर्भधारण के सातवें माह के बाद या नौवें माह के पूर्व सधौरी संस्कार किसी शुभ दिन में सम्पन्न किया जाता है। इस संस्कार में मायके वाले सधौरी (वस्त्र आभूषण तथा पकवान) लेकर आते हैं इसमें गर्भवती स्त्री के मायके से सात प्रकार के पकवान लाए जाते हैं।
2. सोहर गीत
जन्म संस्कार विषयक गीत को "सोहर गीत' कहा जाता है। किंतु यह गीत गर्भावस्था की सुनिश्चितता के साथ ही जन्मोत्सव तक गाए जाते हैं। इस प्रकार के गीत पुत्र जन्म की अपेक्षा में अधिक गाए जाते हैं।
3. बधाई गीत
शिशु के जन्म के छठवें दिन बधाई संस्कार मनाया जाता है। शिशु के जन्म पर स्त्रियां बधाई गीत गाती है।
4. लोरी गीत
बच्चों को सुलाने के समय गाया जाता है।
5. बरुआ गीत
उपनयन संस्कार के समय गाए जाने वाले गीत को "बरुआ गीत' कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ी विवाह गीत
1. चुलमाटी
विवाह के आरम्भ में माटी खुदाई के समय गाया जाता है। चुलमाटी को विवाह का प्रारंभ माना जाता है। सुवासिनें विवाह में उपयोगी चूल्हों के लिए मिट्टी लाने के लिए गांव के बाहर किसी ने नदी या तालाब के किनारे जाती है। मिट्टी खोदते समय सुवासिनें समवेत स्वरों में गीत गाती है।
2. मंगरोहन
यह विवाह संस्कार से संबंधित गीत है। मंगरोहन मंगल काष्ठ होता है। इसकी भूमिका विवाह की साक्षी के रूप में होती है। यह गीत मंगरोहन गाड़ते समय गाया जाता है जिसमें लकड़ी की मानवाकृति को मंडप के नीचे गाड़ते हैं।मैदानी इलाके में मंगरोहन महुआ वृक्ष के डाली को गड़ते है।
3. तेलचघी गीत
चुलमाटी के उपरांत हरिद्रालेपन का कार्य शुरू कर दिया जाता है जिसे तेलचधी कहते हैं। यह कार्य वर-वधू दोनों पक्षों द्वारा किया जाता है। विवाह मंडप में वर या कन्या को उनके घरों में पीढ़े पर बिठाकर उनके अधो-अंग में उपांग की ओर हल्दी का लेपन करते हुए यह प्रक्रिया पांच बार किया जाता है।
4. मायन गीत
मायन के समय गाया जाने वाला गीत। इस दिन अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
5. नहडोरी गीत
यह रस्म वर-वधू दोनों पक्ष में होता है जिसमें नहडोरी अर्थात् नहलाने के बाद डोरी (कंकन) बांधा जाता है। इस रस्म में वर एवं वधू के सिर के ऊपर पर्रा में पानी भरा सात चुकिया रखकर हिलाते हैं।
6. मौर सौंपनी
यह रस्म बारात प्रस्थान के पूर्व किया जाता है। जिसमें महिलाओं द्वारा दीपक को साक्षी मानकर मौर-मुकुट में दोनों हाथ रखकर सौंपते हुए दूल्हे को आशीर्वाद दिया जाता है।
7. बारात प्रस्थान
बारात के समय गाया जाने वाला गीत। बारात की पूरी तैयारी हो जाने के पश्चात् सभी बाराती सज-धजकर रवाना होते हैं। सुवासिनें उनको विदाई गाना प्रारंभ कर देती हैं। देती हुई गीत वर के पूर्वानुराग का चित्रण मिलता है। उसके मनोभावों का सूक्ष्मांकन इन गीतों की विशेषता है।
8. नकटा नाच
बारात प्रस्थान होने वाली रात में वर के घर में महिलाओं द्वारा नाच गाना किया जाता है। यह अत्यंत गोपनीय एवं आत्मीय आयोजन है जिसमें पुरुषों का प्रवेश वर्जित रहता है। इसमें स्वयं महिलायें ही पुरूषों का रूप बनाकर हास-परिहास और मनोविनोद करती हैं।
9. परघौनी गीत
परघौनी गीत बारात के स्वागत के समय गाया जाता है। बारात कन्या के गांव में पहुंच जाती है। बारात की परघनी को देखने की उत्सुकता कन्या पक्ष वालों के मन में होती है। कोई स्त्री छत पर चढ़कर देखती है तो कोई देहरी में निकलकर। सुवासिनें बारात की अगवानी करने को आगे बढ़ती हैं और स्वागत गीत उनके मधुर कंठों से मुखरित हो उठता है।
10. भड़ौनी गीत
भड़ौनी गीत खाने के समय वर/वधू पक्ष द्वारा हास-परिहास हेतु गाया जाता है।
11. टिकावन गीत
टिकावन नव-दम्पति को उपहार दिया जाता है। इस अवसर पर कन्या पक्ष वाले यथाशक्ति अपने दामाद-बेटी को भेंट देते हैं। इसमें टिकावन के रूप में वधू के मामा पक्ष द्वारा पँचहर दाईज (पीतल और कांसे के पांच प्रकार के बर्तन) करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
12. भाँवर गीत
फेरा लेते समय गाया जाने वाला गीत है। सात फेरों के पड़ते ही विवाह की रीति संपन्न मानी जाती है। भांवर के आनुष्ठानिक कार्य के साथ पंडित द्वारा मंत्रोच्चारण किया जाता है। एक प्रचलित लोकगीत में बताया गया है कि भांवर की बेला अब आ गई। वर-वधू एक गांठ में जुड़ गए हैं। वे फेरा लगाना प्रारंभ करते है तभी सुवासिनें एवं अन्य महिलाएँ कोमल कंठों से गीत गायन करती हैं।
13. बिदाई या गौना गीत
पठौनी गीत गाई जाती है। इन गीतों में कन्या और कुटुम्बजनों की मनोदशा का हृदयविदारक चित्रण मिलता है।
14. पहमी गीत
विवाह के समय गाये जाने वाले प्रमुख संस्कार गीत है।
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