छत्तीसगढ़ी का पंचमुखी वर्गीकरण | छत्तीसगढ़ी व्याकरण | CG Grammar

वर्तमान में छत्तीसगढ़ी अनेक क्षेत्रीय स्वरूप प्रचलित हो गए हैं जिन्हें हम निम्नानुसार वर्गीकृत कर सकते हैं -

छत्तीसगढ़ी का पंचमुखी वर्गीकरण

केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी - यह छत्तीसगढ़ी मानक हिन्दी के प्रभावों से युक्त है। इस पर स्थानीय बोलियों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ा है । इसे ही कुल 18 नामों से जाना जाता है जिनमें - कवर्धाइ, कांकेरी, खैरागढ़ी, बिलासपुरी, रतनपुरी, रायपुरी, धमतरी, पारधी, बहेलिया, बैगानी, सतनामी है। इस समूह में सर्वोपरि मानी गयी है छत्तीसगढ़ी।

पश्चिमी छत्तीसगढ़ी - इस छत्तीसगढ़ी पर बुंदेली व मराठी का प्रभाव पड़ा है - कमारी, खल्हाटी, पनकी, मरारी आदि इनमें आती हैं। जिनमें सर्वप्रमुख है खल्टाही।

उत्तरी छत्तीसगढ़ी - इस पर बघेली, भोजपुरी और उरांव जनजाति की बोली कुडुख का प्रभाव पड़ा है। इसमें कुल 5 नाम शामिल हैं - पण्डो, सदरी, कोरवा, जशपुरी, सरगुजिया व नागवंशी। इस समूह में सर्वोपरि मानी जाती है सरगुजिया।

पूर्वी छत्तीसगढ़ी - इस पर उड़िया का व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसमें कुल 6 नाम शामिल है - कलंगा, कलंजिया, बिंझवारी, भूरिया, चर्मशिल्पी, लरिया। इनमें सर्वप्रमुख है लरिया।

दक्षिणी छत्तीसगढ़ी - इस पर मराठी, उड़िया और गोड़ी का प्रभाव पड़ा है। इसमें कुल 9 नाम शामिल है - अदकुरी, चंदारी, जोगी, धाकड़, बस्तरी, मगरी, मिरगानी और हल्बी। इनमें सर्वोपरि है हल्बी।

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