छत्तीसगढ़ी अव्यय | छत्तीसगढ़ी व्याकरण | Chhattisgarhi Avyay Chhattisgarhi Grammar

छत्तीसगढ़ी भाषा व्याकरण में अव्यय का अर्थ - अबियथ वो सब्द आय, जेकर रूप मा लिंग, बचन, पुरुस, कारक आदि के कारन कोनो किसम के विकार उत्पन नइ होय। अइसन सब्द मन हरहालत मा अपन मूल रूप मा बने रहिथे। ईंकर बियय (व्यय) नइ होय तेकर सेती इनला अबियय केहे जाथे।
जइसे - एती, वोती, इहाँ, उहाँ, काबर, कब, कउखन, जब्भे, तब्भे, अउ, भलुक, फेर, नइते आदि।

Chhattisgarhi Avyay

अबियय के परकार (अव्यय के प्रकार) - अबियय के चार भेद करे जाथे 

1. किरिया बिसेसन
2. संबंध वाचक
3. समुच्च्य वाचक
4. बिसमयादि बाचक

1. किरिया बिसेसन


किरिया बिसेसन - जउन सब्द ले किरिया, बिसेसन नइते आने किरिया - बिसेसन के बिसेसता के गियान होथे वोला 'किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - सेवक इहाँ आवत हे। ये बाक्य मा 'इहाँ ' सेवक के आय के बिसेसता बतात हे, एकर पाय के 'इहाँ ' हा किरिया - बिसेसन आय।

किरिया - बिसेसन के परकार -

1. परयोग के आधार मा -
A. सधारन 
B. संयोजक 
C. अनुबन्ध

2. रूप के अधार मा -
A. मूल 
B. यौगिक 
C. स्थानीय

3. अर्थ के अधार मा -
A. परिनाम बाचक
B. रीत बाचक
C. काल बाचक
D. स्थान बाचक

1. परयोग के आधार मा -

A. सधारन किरिया बिसेसन - जउन किरिया बिसेसन के - उपयोग वाक्य या सुतंत रूप ले होथे वोला 'सधारन किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - लघियाँत आ गेंव। ये वाक्य मा 'लघियाँत' सुतंत रूप ले उपयोग होय हे।

B. संयोजक किरिया बिसेसन - कोनों उपवाक्य (सहियोगी बाक्य) ले संबंध रखइया किरिया - बिसेसन ला 'संयोजक किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - जिहाँ जावत हस। उहाँ ले मे आ गे हँव।

C. अनुबद्ध किरिया बिसेसन - अवधारना खातिर कोनों सब्द के संग परियुक्त होवइया किरिया बिसेसन ला ‘अनुबद्ध किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - झुठलंगरा के उही पतियाही जेकर मउत आगे है। 

2. रूप के अधार मा -

A. मूल किरिया बिसेसन - जउन किरिया - बिसेसन के बने मा आने सब्द के योग नइ राहय वोला 'मूल किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - नी, नइ, फेर, लट्ठा (पास), नजीक (निकट), हुरहा (अचानक) आदि।

B. यौगिक किरिया बिसेसन - कोनों सब्द मा आने पद नइते परत्यय के जुड़े ले बने किरिया बिसेसन ला 'यौगिक किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - इहाँ तक (यहाँ तक), छिनभर (क्षण भर), तुरतेताही (तत्काल), के के (कब से), झटले (जल्दी से) आदि।

C. स्थानीय किरिया बिसेसन - बिना रूपांतर के बिसेस जगा मा परियुक्त होवइया किरिया - बिसेसन ला 'स्थानीय किरिया - बिसेसन' केहे जाथे।
जइसे - वोकर मती घूमत हे।

3. अर्थ के अधार मा -

A. परिनाम बाचक - ये किरिया बिसेसन ला अइसन ढंग ले बांटे जा सकथे -

i. अधिकता बाचक - बहुत, बिक्कट, बिहद, अघात, टिपटिप - ले, सिगबिग - ले, अतिक आदि।

ii. कमी वाचक - रंचकन, थोरकुन, चिटकिन, अतकिचकन आदि।

iii. मातरा बाचक - अतका, अतकी, अतकू, अतके, अतिक, अतेक, वोतक, वोतेका, बोतकी, बोतकु, वोतके, वोतिक, जतका, जतकी, जतके, कतक, कतका, कतकी, कतके, कतिक, कतेक, ततक, ततकी, ततके, तत्तीक, ततेक, वतकू आदि।

iv. पर्याप्ति बाचक - सिरिफ, केवल, जादा, बराबर आदि।

v. तुलना बाचक - कमती, बेसी, जादा, बराबर आदि।

vi. सरेनी (श्रेणी) बाचक - बारी - बारी ले, - एकक करके, थोरिक, थोरिक जादा - जादा, गजब - गजब आदि।

B. रीत बाचक किरिया बिसेसन - छत्तिसगढ़ी मा किरिया - बिसेसन के रूप अइसन ढंग ले मिलथे -

i. हामी (स्वीकृति) बाचक - हो, हव, हहो, हाँ, बढ़िया, वाजिब आय, बने करेस आदि।

ii. मनाही (निषेध) बाचक - मत, झन, झिन, नइ, नी आदि।

iii. निस्चे (निष्चय) बाचक - ए, एच, इच, च, चे, चो, हे आदि परत्यय लगाके भाव बियक्त करे जाये।
जइसे - निच्चटे, बिल्कुलहे, आरुगेच, ओतकेच, अभिचे, वहुँचो आदि।

iv. अनिस्वे (अनिष्चय) बाचक - देखहूँ, तइसे, साइत, कोजनी, कोनजनी, बहुँत करके आदि।

v. कारन बाचक - एकर बर, एकर पाय के, एकर सेती, काबर, ए खातिर आदि।

vi. परकार बाचक - अइसन, वइसन, जइसन, वइसे, कस, सेंती - मेंती, झपझिप, कलेचुप आदि।

vi. अवधारना बाचक - घलो, सिरिफ, तक आदि।

C. काल बाचक किरिया बिसेसन - एकर तिन भेद करे जा सकथे -

i. समे बाचक - आज, काली, परोनदिन, नरनदिन, सँझा, बिहिनियां, मँझनियाँ, संझौती, पहाती आदि।
 
ii.  अवधि बाचक - संझकेरहा, अबेरहा, आजकाल, कभु - कभु, रोजदिन, सबोदिन आदि।

iii. करम बाचक - घेरी - बेरी, एकधउवाँ - एकधउवाँ, ओरी - पारी, तार - तार आदि।

D. स्थान बाचक किरिया बिसेसन - एकर दू भेद करे जा सकथे -

i. स्थिति बाचक - इहाँ, उहाँ, कतिहाँ, जिहाँ, आघू, मॅझोत, पार, पिछोत, अगसई, पगसई, दुरिहा, नजिक आदि।

ii. दिसा बाचक - एती, ओती, जेती, तेती, कती, अंते - तंते, एकोन, एमेर, कोनों मेर, एलंग ओलंग आदि।

2. संबंध बाचक अबियय


संबंध बाचक अबियय - जउन सब्द हा कोनों संगिया नइते सर्वनाम के पाछु आके वो संगिया नइते सर्वनाम के संबंध बाक्य के आने सब्द ले होय के गियान कराथे वोला 'संबंध बाचक अबियय' केहे जाथे।
जइसे - सउँजिया के जबाना अब नंदागे। ये बाक्य मा ‘सउँजिया’ सब्द ला ‘नंदागे' किरिया जोड़े के गियान अब सब्द ले होवत हे। एकर पाय के 'अब' संबंध बाचक अबियय आय।

3. समुच्चय बाचक अबियय


समुच्चय बाचक अबियय - जउन बाक्य नइते सब्द के संबंध दूसर बाक्य नइते सब्द ले जोड़थे तउन सन्द ला 'समुच्चय बाचक अबियय' केहे जाथे।
जइसे - चैतूराम आगे अउ शिवराम नइ अइस। ये बाक्य मा 'अउ' समुच्चय बाचक अबियय आय। काबर के चैतूराम आगे ला 'शिवराम नइ अइस' ले जोड़थे।

4. बिसमयादि बाचक अबियय


बिसमयादि बाचक अबियय - जउन अबियय ले खुसी, दुख, अचंभा आदि भाव मन के गियान होथे, फेर उँकर संबंध बाक्य नइते वोकर कोनों बिसेसन सब्द ले नइ होय वोला 'बिसमयादि बाचक अबियय' केहे जाथे।
जइसे - ओहो ! जिनगी भर के दुख एकठा झपागे। ये बाक्य मा 'ओहो !' बिसमयादि बाचक अबियय आय। कारन के 'ओहो !' के संबंध ये बाक्य नइते वोकर कोनों बिसेसन लो नइ है।

इन्हें भी पढ़ें -
• छत्तीसगढ़ी विशेषण
• छत्तीसगढ़ी वचन
• छत्तीसगढ़ी अनेकार्थी शब्द

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