छत्तीसगढ़ी लिंग | छत्तीसगढ़ी व्याकरण | Chhattisgarhi Gender Chhattisgarhi Grammar

लिंग के अर्थ अऊ परिभाषा सब्द के जात ला बियाकरण मा लिंग केहे जाथे। लिंग संस्किरित भाखा के सब्द आवय एखर मतलब चिनहा या फेर निसान होथे।

हिंदी में - जिस शब्द से स्त्री या पुरुष होने की जाति का बोध हो उसे लिंग कहा जाता है।

Chhattisgarhi Gender CG Grammar

अइसन चिनहाँ जेकर ले नर नइते मादा होय के चिनहारी करे जा सके, कोनों जिनिस (पदार्थ) मा नइ मिले केवल जिनावरेच मन (प्राणियों) मा मिलथे। एकर पाय के छत्तिसगढ़ी मा सिरिफ चिनहउक जिनावर मन ला (प्राणियों को) नर - मादा के रूप मा बाँटे जाथे। अनचिनहऊ जिनावर, जिनिस अउ भावबाचक संगिया के उपयोग पुल्लिग के रूप मा होथे। सायद एकरे सेती 'छत्तिसगढ़ी संज्ञा' पद या तो पुल्लिग होथे हैं या स्त्रीलिंग।

लिंग के प्रकार और भेद -

छत्तिसगढ़ी मा संगिया पद ला लिंग के अधार मा तिन भाग मा बाँटे जाथे
1. स्तिरीलिंग 
2. पुल्लिग 
3. उभयलिंग

1. स्तिरीलिंग -

जउन मा जिनावर या फेर परानी मनके मादा होय के पता लगथे तउन ला 'स्तिरीलिंग' केहे जाथे। जेकर ले स्त्री जाति के बोध होथे। अर्थात जिस से स्त्री जाति का पता चलता है इसको स्त्रीलिंग कहते हैं।

जइसे उदहारन - बछिया, गइया, मंजूरी, कुकरी, कुतनीन, गदही, घोड़ी, सुरनिन, हथनिन, नागिन, भइंस्सी, बेंदरी, डोकरी, नोनी, काकी, नानी, आदि।

2. पुल्लिंग -

जउन मा स्तिरीलिंग अउ उभयलिंग मन ला छोड़ के बाँकी जम्मो 'संगिया पुल्लिंग' होथे। जेकर ले पुरूष जाति के बोध होथे। अर्थात जिससे पुरुष जाति का पता चलता है उसे पुल्लिंग कहते हैं।

जइसे उदहारन - बछरू, टूरा, बाबू, ददा, बबा, नाना, चाचा, कका, मंजूर, भंइस्सा, हांथी, घोड़ा, शेर, भालू, कुकरा, सुरा, डोकरा, टेटका, बइला, गोल्लर आदि।

3. उभयलिंग -

जउन ला संगिया पद के उपयोग स्तिरीलिंग अउ पुल्लिंग दुनो बर करे जाथे ओला 'उभयलिंग' केहे जाथे। यानि केहे जाए ता एहा ओकर मनके काम या फेर रहन सहन के हिसाब ले होथे। उभयलिंग का उपयोग स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों के लिए किया जाता है।

जइसे उदहारन - सगा (मेहमान), बसवार (बासिंदा), महिमान (मेहमान), हितवारथी (शुभचिंतक), आदि। 

लिंग निर्णय -

1. हिंदी मा संगिया के अधार मा बिसेसन, सहायक किरिया, परसर्ग आदि के रूप बदल जथे। जबके छत्तिसगढ़ी मा लिंग के अधार मा संगिया के पहिचान करे जाथे। एकरे सेती संगिया के लिंग के अधार मा केवल बिसेसन के रूप बदलथे। सहायक किरिया, परसर्ग आदि मन के नीही।
जइसे उदहारन - 

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
डोकरा कंजूस हे - डोकरी कंजुसनीन हे
बइला करिया हे - गाय कारी हे
टुरा हुसियार हे - नोनी हुसियारिन हे
बछवा मरखंडा हे - बछिया मरखंडिन हे
बाबू बिलवा हे - नोनी बिलई हे

2. छत्तिसगढ़ी के सर्वनाम मा लिंग के उपयोग नइ होय, अर्थात लिंग के अनसार सर्वनाम के रूप नइ बदले।
जइसे उदहारन - 

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
ओकर टुरा - ओकर टुरी
तोर बइला - तोर गाय
जेकर बाबू - जेकर नोनी
मोर भइंस्सा - मोर भइंस्सी

लिंग परिवर्तन -

जिस तरह से हिंदी भाषा व्याकरण में स्त्रीलिंग को पुल्लिंग में बदला जाता है और पुल्लिंग को स्त्रीलिंग में बदला जाता है ठीक उसी तरह से भी छत्तीसगढ़ी भासा व्याकरण में किया जाता है। छत्तिसगढ़ी मा पुल्लिग ला स्तिरीलिंग बनाय के नियम अइसन ढंग ले होथे।

1. संगिया सब्द मा -

i. आकारांत संगिया स्तिरीलिंग मा इकारांत हो जाथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
आजा - आजी
डोकरा - डोकरी
बेंदरा - बेंदरी
छोकरा - छोकरी
टुरा - टुरी
बिलवा - बिलई

ii. अकारांत, आकारांत, ईकारांत अउ एकारांत जात वाचक संगिया मन मा 'इन' परत्यय लगाये ले ओकर रूप स्तिरीलिंग हो जथे।
जइसे उदहारन - 

अ. अकारांत मा -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग 
गोड़ - गोड़िन
ठाकुर - ठकुरइन
देवार - देवारिन
केंवट - केंवटिन
पंडित - पंडितिन
पटेल - पटेलिन
मंडल - मंडलिन
साहेब - साहेबिन
राऊत - रऊतइन
राव - रावइन
मितान - मितानिन
फलाना - फलानिन

ब. आकारात मा -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
हलबा - हलबिन
गांडा – गंडइन
दरोगा - दरोगिन

स. ईकारांत मा -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
कुर्मी - कुर्मिन
सतनामी - सतनामिन
धोबी - धोबिन
तेली - तेलीन
लोधी - लोधिन
समधी - समधिन

द. एकारात मा -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
पाँड़े - पँडइन
चौबे - चौबइन
पांडे - पंडइन

iii. 'वा' नइते 'रू' परत्यय वाले संगिया मन मा 'इया' परत्यय लगाये ले एकर रूप स्तिरीलिंग हो जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
बछवा - बछिया
पंड़वा - पड़िया
पड़रू - पंड़िया
बछरू - बछिया

iv. 'इया' परत्ययवाले संगिया सब्द मा 'निन' परत्यय लगाय ले वोकर रूप स्तिरीलिंग हो जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
गउंटिया - गउंटनिन
सउँजिया - सउँजनिन
पहाटिया - पहाटनिन

v. ईकारांत संगिया सब्द मन मा निन 'परत्यय लगाय ले स्तिरीलिंग हो जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
हांथी - हंथनिन
नाती - नतनिन

vi. कुछ संगिया मन सुवतंत रूप ले पुल्लिंग अउ स्तिरीलिंग के रूप मा परयोग होथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
ददा भाई - बहिनी
दाई भतार (पति) - मेहरिया (पत्नी)
कुकुर - कुतन्निन
हिरो - हिरवइन

इही नियम के अनसार छत्तिसगढ़ी मा पद बाचक संगिया मन के घलो स्तिरीलिंग रूप बनथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग 
पटवारी - पटवन्निन
सरपंच - सरपंचिन
दरोगा - दरोगिन
कोतवाल - कोतवालिन

अंगरेजी के कुछ पद बाचक संगिया के स्तिरीलिंग रूप घलो कुछ अइसन हे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
डाक्टर - डाक्टरिन
मास्टर - मास्टरिन
उकील - उकीलिन

vii. हिंदी मा जउन पदारथ नइते तत्व बर महतारी - भाव (मातृ - भाव) के बोध होथे उँकर मन बर छत्तिसगढ़ी मा 'महतारी, माई, दाई' आदि जोडे जाथे।
जइसे उदहारन -

भुइयां दाई (धरती माँ)
गंगा माई (गंगा मां)
माटी महतारी (मिट्टी माँ)
दुर्गा दाई (दुर्गा मां)
धरती दाई (धरती मां)

viii. अलंकारिक भाखा मा 'रानी' 'नइते' देवी परत्यय जोड़ के स्तिरीलिंग रूपबनाय जाथे।
जइसे उदहारन -

रतिहारानी - (रातरानी)
बरखारानी - (वर्षारानी)
जलदेवी - (जलदेवी)

2. बिसेसन मा -

छत्तिसगढ़ी मा बिसेसन के लिंग - भेद नीचे लिखाय नियम के अनसार मिलथे

i. आकारांत बिसेसन, स्तिरीलिग मा ईकारांत हो जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
जकड़ा - जकड़ी
भोकवा - भोकवी
रेचका - रेचकी
मोठल्ला - मोठल्ली
जोजवा - जोजवी
रेगड़ा - रेगड़ी
मेचका - मेचकी
कनवा - कनवी
रोगहा - रोगही
दोखहा - दोखही

ii. आकारांत बिसेसन मा 'इन' नइते 'ई' परत्यय जोड़ ले स्तिरीलिंग बन जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
बड़बड़हा - बड़बड़ही, बड़बड़हिन 
भड़भड़हा - भड़भड़हिन, भड़भड़ही
अनमनहा - अनमनहिन, अनमनही
झकझकहा - झकझकहिन, झकझकही
उदबिरहा - उदबिरही, उदबिरहिन 
पंड़रहा - पँडरहिन, पँडरही
अनगइहाँ - अनगहिन, अनगही
खोरगिंजरा - खोरगिंजरिन, खोरगिंजरी

iii. यांत बिसेसन मा 'या' के जगा 'निन' परत्यय लगाय ले स्तिरीलिंग बन जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
परबुधिया - परबुधनिन
परलोखिया - परलोखनिन
कोढ़िया - कोढ़निन

( iv ) ऊकारांत बिसेसन ले 'ऊ' ला निकाल के 'हिन' नइते 'ई' परत्यय लगाय ले स्तिरीलिंग बन जथे।
जइसे उदहारन -
 
पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
मिटकू - मिटकहिन, मिटकहीं
चिपकू - चिपकहिन, चिपकही
मंदू - मंदहिन, मंदही
लटकू - लटकहिन, लटकही
टरकू - टरकहिन, टरकही
भड़कू - भड़कहिन, भड़कही
फेंकू - फेंकहिन, फेंकही

( v ) हिंदी ले छत्तिसगढ़ी मा आये 'वान ' परत्यय युक्त बिसेसन ले 'वान' के जगा 'वंतिन' परत्यय लगाय मा स्तिरीलिंग रूप बन जथे।
जइसे उदहारन -

पुल्लिंग - स्तिरीलिंग
धनवान - धनवंतिन
बलवान - बलवंतिन
गुनवान - गुनवंतिन
सतवान - सतवंतिन
दयावान - दयावंतिन

बिसेस -

अ. 'ई' स्वरांत भाव बाचक संगिया ले बने 'इया' परत्यय बिसेसन सब्द मन उभयलिंगी होथे।
जइसे उदहारन -

अमरइया - (पहुँचने, पहुँचाने या पकड़नेवाला)
कमइया - (कार्य करनेवाला)
बोलइया - (बोलनेवाला)
धोवइया - (धोनेवाला)
गवइया - (गाने वाला)
रंधइया - (खाना बनाने वाला)
चलइया - (चलने वाला)
मरइया - (मारने वाला)
देवइया - (देने वाला ) लेवइया - ( लेने वाला) 
खवइया - (खाने वाला या खाना खिलाने वाला)
रोवइया - (रूलाने वाला या रोने वाला)
खेलइया - (खेलने वाला)
उड़इया - (उड़ने वाला)
रेंगइया - (रेंगने वाला या चलने वाला)

ब. 'उक' परत्यय वाले बिसेसन स्तिरीलिंग अउ पुल्लिग दुनों बर परयोग होथे।
जइसे उदहारन -

घरफोडुक - (घर फोड़नेवाला)
बिगाडुक - (बिगाड़ करनेवाला)
धपोडुक - (असमर्थ होनेवाला)
जुगाडुक - (जुगाड़ करने वाला)
सुचारूक - (सुचारू रूप से करने वाला)
मयारूक - (मया अर्थात प्यार करने वाला)
उड़ानुक - (उड़ने लायक)

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• छत्तीसगढ़ी अव्यय
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