छत्तीसगढ़ी अक्षर एवं ध्वनि विचार | छत्तीसगढ़ी व्याकरण | Chhattisgarhi Letters and Sound | Chhattisgarhi Grammar

आखर - भाखा के सबले छोटे इकाई जेकर अउ दुसरा कोनो भाग नइ करे जाय सके। मतलब आखर भाखा के ओ इकाई ला केहे जाथे जउन सबले छोटे होथे अउ ओला दुसर भाग मा नइ बांटे जा सके, जेकर समूह ले आखर ओरी अउ ध्वनि (सब्द) के निर्माण होथे। जइसे - क्, ख, ग्, अ, इ, उ, ए, ट्, ठ्, र्, ज्, म्, प् आदि आखरेच ले ध्वनि चिनहाँ अउ सब्द बनाय के बुता होथे। आखर के उचारन समूह ला आखर ओरी (वर्णमाला) केहे जाथे।

Chhattisgarhi Letters and Sounds

छत्तीसगढ़ी आखर ओरी हिंदी के वर्णमाला ले मिलती जुलती हवय। छत्तिसगढ़ी के आखर - ओरी मा 40 आखर हावे। ये आखर - ओरी मा स्वर अउ बियंजन सामिल हाबें, जिंकर बिबरन नीचे हाबे -

1. स्वर आखर (स्वर अक्षर) -

आखर के वो रूप मन ला स्वर केहे जाथे जिंकर उचार सुतंत रूप ले होथे। जउन ध्वनि के उचार मा मुहूँ ले हावा अबाध रूप ले निकलये वोला 'स्वर आखर' केहे जाथे। छत्तिसगढ़ी आखर ओरी मा स्वर के संखिया दस हवे।

ये स्वर मन ला उँकर उचार के अनसार दू भाग मा बाँटे जाथे -

A. छोटे स्वर
B. बड़े स्वर

A. छोटे स्वर - एमा अ, इ, उ, ए स्वर मन आथे, इँकर उचार करे मा समे लागथे। 

B. बड़े स्वर - एमा आ, ई, ऊ, ऐ, ओ, औ स्वर मन ला सामिल करे जाथे। इंकर उचार करे बर छोटे स्वर मन ले जादा समे लागथे।

स्वर आखर के गठन के हिसाब ले एकर दू भेद करे जाथे -

1. मूल स्वर
2. संयुक्त स्वर

1. मूल स्वर - मूल स्वर वो मन ला केहे जाथे जिकर उचार ले - भाखा - अवयव सुरू ले आखरी तक एक निस्चित सरूप मा रथे।
उदाहरन - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ।

2. संयुक्त स्वर - ए स्वर हा ऐसन दू स्वर के अइसन मिझरहा रूप आय जेमा दुनों स्वर अपन सुतंत सत्ता छोड़ के एक रूप हो जथें अउ साँस के एक बेग (वेग) मा उचार होथे, अर्थात् दू स्वर के मिले ले बने नवाँ स्वर ला संयुत स्वर केहे जाथे।
ऐ = अ + इ या फेर अ + ई
ऐसने औ = अ + उ या फेर अ + ऊ

कभू - कभू 'आ' के उपयोग घलो संयुक्त स्वर के रूप मा होथे।
एकर गठन अ + उ ले होये, जइसे - गड़उना - गड़ोना, बनउकी - बनोकी, भड़उनी - भड़ोनी आदि।

2. बियंजन आखर (व्यंजन अक्षर) -

बियंजन ओ आखर मन ला केहे जाथे जिकर उचार मा मुहूँ ले हावा अबाध गति ले बाहिर नह निकल सके। इकर उचार स्वर के महियोग ले होथे। हरेक बियंजन के उचार मा 'अ' स्वर मिले रथे। बिना 'अ' स्वर वाले बियंजन ला हलन्त लगा के लिखे जाथे।
उदाहरन - क्, ख्, ग्, आदि अइसन बियंजन ला 'अधुवन' नइते 'निमगा बियंजन' (अर्द्ध या शुध्द व्यंजन) केहे जाथे। छत्तिसगढ़ी मा बियंजन मन के संखिया 30 हवे।

बियंजन घलो तिन परकार के होथे -

A. स्पर्स
B. अंतस्थ
C. उस्म

A. स्पर्स (स्पर्श) बियंजन - स्पर्स के मतलब आय छूना। जीभ ले मुहूँ के आने अंग (तालू, मूर्धा, दाँत, ओंठ आदि) के छूवे ले जउन बियंजन के उचार होथे वोला 'स्पर्स बियंजन' केहे जाथे। आन - आने अंग के छूवे ले जउन - जउन बियंजन के उचार होथे उन ला उही समूह (वर्ग) मा बाँटे जाथे। एकर सेती स्पर्स बियंजन ला समूह बियंजन घलो केहे जाथे।

ये बियंजन अइसन ढंग ले हाबे -

समूह आखर -

क् - क्, ख, ग, घ (कण्ठ ले उचार वाले आखर)
च् - च, छ, ज, झ् (तालू ले उचार वाले आखर)
ट् - ट्, ठ्, ड्, ढ् (मूर्धा ले उचार वाले आखर)
त् - त्, थ्, द्, घ, न् (दाँत ले उचार वाले आखर)
प् - प्, फ्, ब्, म्, (ओंठ ले उचार वाले आखर)

B. अंतस्थ बियंजन - अंतस्थ बियंजन ला अर्धस्वर घलो केहे जाथे। छत्तिसगढ़ी मा 'य्' अउ ‘व्' अर्धस्वर होथे। इँकर उचार बखत मुहूँ के दरवाजा पूरा - पूरा बंद नइ हो पाय अउ पूरा - पूरा खुल्ला घलो नइ राहय। उचार के सुरूवात स्वर के स्थिति मा होथे अउ अन्त बियंजन के स्थिति मा। एकर पाय के इन ला अर्धस्वर नइते अन्तस्थ बियंजन केहे जाथे।

C. ऊस्म (ऊष्म) बियंजन - छत्तिसगढ़ी मा 'स्' अउ 'ह्' ला ऊस्म बियंजन माने जाथे। इँकर उचार मा भीतर के हावा रगड़ खावत मुहूँ ले बाहिर निकलथे।

बियंजन के उचार (उचारण) बिभाजन परियत्न के अधार मा बियंजन के उचार ला 8 भाग मा बाँटे जा सकथे -

1. स्पर्स (स्पर्श) - स्पर्स के मतलब आय छूना। जीभ ले मुहूँ के आने अंग (तालू, मूर्धा, दाँत, ओंठ आदि) के छूवे ले जउन बियंजन के उचार होथे वोला 'स्पर्स बियंजन' केहे जाथे।

2. स्पर्स संघरसी (संघर्सी) - जउन बियंजन के सुरूवात स्पर्स ले होथे फेर उचारन एक झटका ले नइ होके हलु हलु रगड़ खावत निकलथे वोला 'स्पर्स संघरसी बियंजन' केहे जाथे जइसे - च्, छ, ज्, झ्।

3. अनुनासिक - जिंकर उचार मा मुहूँ के संगे - संगे नाक के घलो सहायता ले जाथे वोला अनुनासिक अनुनासिक बियंजन केहे जाथे। छत्तीसगढ़ी मा 'न्' अउ 'म्' अनुनासिक बियंजन आवय। 'क्' समूह के पांचवां बियंजन 'ङ्' अउ 'ञ' छत्तीसगढ़ी मा सिरिफ अनुनासिक चिनहाँ ( ं ) के रूप मा उपयोग होथे।

4. संघरसी (संघर्सी) - जउन बियंजन के उचार मा भीतर के हावा न तो स्पर्स बियंजन कस चुमुक ले रूके न स्वर जइसे अबाध गति ले मुहूँ ले बाहिर निकले वोला 'संघरसी बियंजन' केहे जाथे। एकर स्थिति स्पर्स बियंजन अउ स्वर के बीच के होथे, जइसे 'स्', 'ह्'।

5. पारसिक (पार्श्विक) - ए हा वो बियंजन आय जेकर उचार ले भीतर के हावा जीभ के कोनों जगा मा थोरिक रूक जथे, ताँहा ले बाद मा जीभ के कोरे कोरे निकलथे। कोर ले निकले के सेती एला 'पारसिक - बियंजन' केहे जाथे। छतिसगढी मा 'ल्' पारसिक - बियंजन आय।

6. लुंठित - लुठित वो बियंजन ला केहे जाथे जेकर उचार मा टीप जीभ (जिह्वानोक) बेलना कस मुड के मसूड़ा ला झट ले छथे। छतिसगढी मा 'र' ला लुंठित बियंजन केहे जाथे।

7. उत्छिप (उत्क्षिप्त) - ये बियंजन के उचार मा जीभ के नोक झटपट ऊपर तालू ला एक घांव छूथे। एकर पाय के कंठ के कोनों भाग हा काँप जाथे। इही कंपन के सेती एला 'उत्छिप बियंजन' केहे जाथे। छत्तिसगढ़ी मा 'ड्र' अउ 'द्' उत्छिप बियंजन आय।

8. अर्धस्वर - अंतस्थ बियंजन ला अर्धस्वर घलो केहे जाथे। छत्तिसगढ़ी मा 'य्' अउ 'व्' अर्धस्वर होथे। इँकर उचार बखत मुहूँ के दरवाजा पूरा - पूरा बंद नइ हो पाय अउ पूरा - पूरा खुल्ला घलो नइ राहय। उचार के सुरूवात स्वर के स्थिति मा होथे अउ अन्त बियंजन के स्थिति मा। एकर पाय के इन ला अर्धस्वर नइते अन्तस्थ बियंजन केहे जाथे।

छत्तिसगढ़ी आखर - ओरी (वर्णमाला)

स्वर -

A. मूल स्वर - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ
B. संयुक्त स्वर - ऐ, ओ

बियंजन -

A. स्पर्स - क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, तू, थ, द, ध, प, फ, ब, भ्
B. स्पर्स - संघरसी (संघर्सी) - च्, छ्, ज्, झ्
C. अनुनासिक - न, म्
D. संघरसी - स्, ह्
E. पारसिक - ल्
F. लुंठित - र
G. उत्छिप - ड्, ढ्
H. अर्धस्वर - य्, व्
I. सुद्ध अनुनासिक - ( ां )

ए परकार ले सबो मिलाके 42 आखर संखिया होथे।

सुवाँसा - गति के अनसार आखर विभाजन -

आखर मन के उचार मा सुवाँसा के गति भीतर मा कम - जादा होबे करथे। जउन आखर के उचार मा सुवाँसा के गति कम हो जाथे वोला अल्पपरान (अल्पप्राण) केहे जाथे। हरेक आखर - समूह के पहिला तिसरा अउ पाँचवा आखर मन अल्पपरान होथे।
जइसे - क्, ग, च्, ज्, द्, ड, त्, द्, न, प, बम, य, र, ल, व् अउ ड्।

'महापरान' आखर मा सुवासा बाढ़ जथे। हरेक आखर समूह के दुसरा चउँथा अउ संघरसी आखर मन महापरान कहाथे।
जइसे - ख, घ, छ्, झ, ठ, ढ्, थ्, ध्, फ्, भ्, स, ह्, अउ ढ्।

 तंन्तु (तंत्रियों) कम्पन के अनसार आखर विभाजन -

आखर उचारे मा मुहूँ के स्वर तन्तु मन काँपथे। इही कपन के अधार ले आखर मन ला दू भाग मा बाँटे जाथे -

1. अघोस
2. सघोस

1. अघोस - जउन आखर ला उचारे मा स्वर तंतु मन एक - दूसर ले दुरिहा रहिथें जेकर ले सुवांसा अबाध गति ले बिना कांपे निकल जथे, ओला अघोस आखर केहे जाथे, छत्तिसगढ़ी मा हरेक आखर समूह के पहिला, दूसरा अउ स् (संघर्सी) आखर मन अघोस आवय।

2. सघोस - जब आखर उचारे के बखत स्वर तन्तु मन एक - दूसर के निच्चट तीर आके सुवाँसा मा कम्पन उत्पन कर देथें, तब वइसन आखर मन ला 'सघोस' केहे जाथे। जम्मो स्वर आखर हरेक आखर समूह के तिसरा, चंउथा, पाँचवाँ अउ अन्तस्थ (य्, व्) आखर मन सघोस आवय।

मांतरा - विचार - स्वर अउ बियंजन के संयोग ले बने रूप परिवर्तन ला 'मातरा' केहे जाथे। 'अ' स्वर ला छोंड़ के हरेक स्वर के मातरा होथे, जउन ला चिनहाँ के रूप मा लगाय जाथे। ये चिनहाँ मन ला लगाय के नियम अइसन ढंग ले हाबे।

मातरा युक्त -

ग् + अ + ा = ग
ग् + अ + आ = गा
ग् + अ + ि = गि
ग् + अ + ी = गी
ग् + अ + ु = गु
ग् + अ + ू = गू
ग् + अ + े = गे
ग् + अ + ै = गै
ग् + अ + ो = गो
ग् + अ + ौ = गौ

बिसेस - 'र्' बियंजन संग 'उ' नइते 'ऊ' के मातरा ला ऊपर मा 'क' के उदाहरन बताय अनसार नइ लगाय जाय। 'र्' के संग इंकर उपयोग अइसन ढंग ले करे जाथे -
र् + अ + उ = रु
र् + अ + ऊ = रू

दुहरा बियंजन (व्यंजन द्वित्य) - जब एक बियंजन लगातार दूघांव ले उपयोग मा आथे तब वोला 'दुहरा बियंजन' केहे जाथे। दुहरा बियंजन के उपयोग हिन्दी के नियम के अनसार करे जाथे। सिरिफ 'र्' के उपयोग मा हिन्दी के नियम ला पूरा - पूरा नइ अपनाके रेफ अउ हलन्त लगाय जाथे।

उदहारण -

1. 'र्' रेफ के रूप मा - पर्रा, चटर्रा, हरें।
2. 'र्' हलन्त के रूप मा - पर् रा, चटर् रा, हर् र्रे।

बिसेस - 'ष, श, क्ष, त्र ', अउ 'ज्ञ' के उपयोग छत्तिसगढ़ी मा नइ होय। इंकर ले बने सब्द जइसे - 'शंकर, वर्ष, शिक्षा, त्रिशूल, ज्ञान, आदि ला छतिसगढ़ी मा- संकर, बरस, सिच्छा, तिरसुल, गियान आदि लिखे जाथे।

छत्तिसगढ़ी आखर - ओरी के अनसार कुछ असुद्ध छत्तीसगढ़ी सब्द अउ उंकर सुद्ध हिंदी रूप कुछ अइसन ढंग ले हाबे -

1. त्रिपाल - तिरपाल
2. तीन - तिन
3. बेचारा - बिचारा
4. विनाश- बिनास
5. विद्या - बिद्या
6. स्कूल - इसकुल
7. बिकास - विकास
8. हाथ - हाँत
9. परकास - प्रकाश
10. परताप - प्रताप
11. दर्जन - दरजन
12. ताश - तास
13. तलाश - तलास
14. आशिक - आसिक
15. शानदार - सानदार
16. नजीक - नजदीक
17. आंख - आंखी
18. नेकी - नेकि
19. परत - पइत
20. चैत्र - चइत
21. सरग - स्वर्ग
22. यौवन- जोबन
23. श्रवण - सरवन
24. त्रास - तरास
25. भुंजवा - भुञजवा
26. बिसराम - विश्राम
27. दरसन - दर्शन
28. अंडी - अण्डी
29. कन - कण
30. बंस - वंश
31. परनाम - प्रणाम
32 प्राण - परान
33. ज्ञान - गियान
34. विशेष - बिसेस
35. गणेश - गनेस
36. ज्ञाता - गियाता
37. रामायण - रमायन
38. वैज्ञानिक - बिगियानिक
39. प्रशंसा - परसंसा
40. संज्ञान - सगियान
41. व्रत - बरत
42. वेणी - बेनी
43. त्रिभुज - तिरभुज
44. पवित्र - पबित्तर
45. प्राणी - परानी
46. त्रिशूल - तिरसुल
47. वजन - बजन
48. लक्ष्मण - लछमन
49. त्रिलोक - तिरलोक
50. गणित - गनित
51. भ्रम - भरम
52. श्रीमान - सीरीमान
53. बान - बाण
54. ग्राम - गराम
55. प्रण - परन

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