संगिया या संज्ञा का परिभाषा -
हिंदी में संज्ञा का परिभाषा - किसी व्यक्ति वस्तु स्थान जाति या भाव के नाम को संज्ञा कहते हैं।
छत्तीसगढ़ी में संज्ञा का परिभाषा - जउन सब्द ले कोनो भाव, परानी नइते जिनिस के नाँव के गियान होथे, ओला संज्ञा कहे जाथे।
उदाहरन - मनखे, गरवा, खवई, हुसियारी आदि।
छत्तीसगढ़ी संज्ञा के प्रकार -
छत्तीसगढ़ी संगिया ह पाँच परकार के होथे -
1. बियक्ति बाचक संगिया (व्यक्तिवाचक संज्ञा)
2. जात बाचक संगिया (जाति वाचक संज्ञा)
3. पदार्थ बाचक संगिया (पदार्थ या द्रव्यवाचक संज्ञा)
4. समूह बाचक संगिया (समूह वाचक संज्ञा)
5. भाव बाचक संगिया (भाव वाचक संज्ञा)
1. बियक्ति बाचक संगिया (व्यक्तिवाचक संज्ञा) -
हिंदी - जिस शब्द से किसी एक ही वस्तु, व्यक्ति या स्थान का ज्ञान होता है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
छत्तीसगढ़ी - जउन सब्द ले कोनो बस्तु, बियक्ति नइते जगा या ठऊर के गियान होथे, ओला "बियक्ति बाचक संगिया" कहे जाथे। एखर ले कोनों बस्तु, बियक्ति नइते जगा के पहिचान होथे।
उदाहरन - रमऊ, पारबती केहे ले एक एक मनखे के, काबरा पहाड़ी केहे ले पहाड़ के, रमायन केहे ले एक किताब के, महानदी कहे ले नदी के गियान होथे।
• बियक्ति वाचक संगिया अइसन डंग ले हो सकथे -
1. वियक्ति के नाँव (व्यक्तियों के नाम) - रामू, जेठू, राम, राधा, फेकन, मनटोरा, बुधारू, कोदू , समारू, बिसाहिन आदि।
2. सहर अउ जगा के नांव (शहरों और गांव के नाम) - दुरुग, भिलई, रइपुर, छत्तिसगढी, भारत देस, रईगढ़ आदि।
3. पानी जगा (ठऊर) के नांव (नदियों, तालाबों के नाम) - बांधा, तरिया, गंगरेल बाँध, शिवनाथ नदिया, कुआँ, महानदी आदि।
4. एलंग के नांव (दिशाओं के नाम) - उत्ती (पूर्व दिशा), बुड़ती (पश्चिम दिशा), रक्सहूँ (दक्षिण दिशा), भण्डार (उत्तर दिशा) आदि।
5. परबत - पहाड़ (पहाड़ों और पर्वतों के नाम) - सिहावा पहाड़, हिमालय पहाड़, मैकाल पहाड़ आदि।
6. किताब, समाचार-पाती (पुस्तकों और समाचार पत्रों के नाम) - रमायन, गीता, भागवत, नवभारत, नई दुनिया, दैनिक भास्कर के नांव आदि।
7. दिन- महिना के नांव (दिनों और महीनों के नाम) - इतवार, सम्मार, मंगल, बुधवार, सुकवार, जेठ, बइसाख, भादो, कुंवार, कातिक, असाढ़ आदि।
8. तिहार बार के नाँव (त्योहारों के नाम) - देवारी, राखी, हरेली, होली, दसराहा, पुन्नी, हरेली, भोजली, छेरछेरा, तीजा, पोरा, आठे कन्हैया, कमरछठ आदि।
9. फर अऊ पेंड़ के नांव (पेड़ों एवं फलों के नाम) - आमा, अमली, बिही, जाम, बोईर, मुनगा, बमरी, खमार, सैगोन, आदि।
इस प्रकार से जहां पर एक वस्तु, व्यक्ति या स्थान का पता चलता है वहां पर व्यक्तिवाचक संज्ञा होता है।
2. जात बाचक संगिया (जातिवाचक संज्ञा) -
हिंदी - जिन शब्दों से एक ही प्रकार की वस्तुओं या प्राणियों के पूरी जाति का बोध होता है उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
छत्तीसगढ़ी - जउन सब्द ले एकेच परकार के जिनिस नइते परानी मन के गियान होथे ओला जात बा संगिया कहे जाथे।
उदाहरन - रूख, बइला, चिरई, पथरा, गरवा, नदिया, रूख राई, टूरी, टूरा, मुसवा, मनखे, लेखक, कवि, गायक, संतरी, चपरासी, हल्ब, गोंड, बैगा, आदि।
• यहां पर रूख केहे ले जम्मो किसम के रुख
• यहां पर बइला केहे ले जम्मो जात के बइला
• यहां पर चिरई केहे ले जम्मो किसम के चिरई
• गोंड केहे ले एक जाति समूह के
• मनखे कहे ले मनुष्य के आदि
• और यहां पर पथरा केहे ले जम्मो किसम के पथरा मन के गियान होथे।
मनखे (मनुष्य) - टुरी, टुरा, औरत, भाई, बहन, दाई, ददा आदि।
चिरई चिरगुन (पशु पक्षी) - गाय, गरवा, बइला, भंइसा, मंजुर, मिटठू, मैना, सुरा, कुकुर आदि।
जिनिस (चीज या वस्तु) - घड़ी, मोबाईल, कंपुटर, खुरसी, टेबल, आलमारी, खटिया, गोरसी, नागर, आदि।
पद अऊ बेवसाय (पद और व्यवसाय) - शिक्षक, डॉक्टर, चपरासी, बाबू, किसानी, लेखक, कवि, सिपाही आदि।
इस प्रकार से वस्तु या प्राणियों के जाति का पता चलता है उसे जाति वाचक संज्ञा कहा जाता है।
3. पदार्थ बाचक संगिया (पदार्थ या द्रव्यवाचक संज्ञा) -
हिंदी - जिस शब्द से किसी ऐसी वस्तुओं का ज्ञान हो जिसे नापतोल किया जा सकता है लेकिन गिना नहीं जा सकता उसे पदार्थ वाचक किया द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं।
छत्तीसगढ़ी - जउन सब्द ले कोनो वस्तु के गियान होथे ओला पदार्थ बाचक संगिया कथे। अइसन वस्तु मन के नाप तउल करे जा सकथे, फेर एला गिने नई जा सकय।
उदाहरन - सोन, चांदी, धान, तेल, दूद, पिसान, घींव, नुन, चांउर, शक्कर, आदि।
छत्तीसगढ़ी में पदार्थ वाचक संज्ञा के कुछ बहुवचन इस प्रकार से बनाया जा सकता है या फिर बनता है -
A. जब एके वस्तु ले आने आने चीज बने रथे। (जब एक वस्तु से अलग - अलग चीजें बनी होती है)।
जैसे - सोने से अंगूठी (सोन ले मुंदरी), सूंता , कटवा आदि।
चांदी से पायल (चांदी ले पइरी), करधन, बिछिया, अईंठी।
इसे छत्तीसगढ़ी वाक्य में कुछ इस प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है -
उदाहरन - सोनहा जिनिस ल धर दे हे, चांदी निपोर मन ला पहिरे हे।
B. जब कोनो वस्तु दू नइते दू ले जादा कुटका मा होथे। (जब किसी वस्तु का दो या दो से ज्यादा भाग होता है)।
उदाहरन - फरिया मन चिटियागे ।
C. जब कोनो वस्तु आने आने जगा नइते बर्तन भाड़ा मा रथे। (जब किसी वस्तु को अलग - अलग जगह पर किसी बर्तन या वस्तु में रखते है या रखा जाता है)।
उदाहरण -
गंहु मन एक जगा सकेलौ।
कोदो मन ल एक जगा तिरियावव।
दूद ल दुहना मा डारव।
कभी - कभी विशेषण शब्द को प्रत्यय लगाकर पदार्थ वाचक संज्ञा भी बना दिया जाता है।
जैसे - मिठ (विशेषण) + ई (प्रत्यय) = मिठई (संज्ञा)
इस प्रकार किसी पदार्थ या वस्तु, द्रव्य का पता चलता है जिसे गिना नहीं जा सकता लेकिन नापा जा सकता है उसे पदार्थ वाचक संज्ञा कहा जाता है।
4. समूह बाचक संगिया (समूह वाचक संज्ञा) -
हिंदी - जिस शब्द से किसी प्राणी या वस्तु के समूह का ज्ञान होता है उसे समूहवाचक संज्ञा कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ी - जउन सब्द ले कोनो जिनिस के समूह मा होय के गियान होथे ओला समूह बाचक संगिया कहे जाथे।
उदाहरन -
• फूल नइते फर मन के समूह (फूल और फल का समूह) - झोरथा, झोरफा, (झोत्था झोत्था के झोत्था अंगुर फरे हे)
• जानवरों का समूह (मवेसी मन के समूह) - बरदी, पहाट, दावन (कोदु घर एक बरदी गाय गरवा हे ग)
• फलदार पेड़ पौधों का समूह (फरदार रूख - राई के समूह) - रेवार, बगिच्चा, बगइचा, ओरी ओरी (समारू के खेत म आमा के बगइचा हवय)
• दूल्हे के साथ जाने वाले लोग (दुल्हा के संग जवइया जन समूह) - बरात, बारात (बिसेसर घर बिकट झन बरात आए रहिन ग)
• ममा घरले टीके पाँच बरतन - पँचहर समूह (बुधारू के टीकावन म ओखर ममा ह पंचहर टीके हे)
• सप्ताह (हफ्ता) - सात दिन का समूह ( मनटोरा के टुरा हफ्ता के हफ्ता अपन ममा दाई घर जाथे रहिथे)
• कोरी - बीस के समूह (कई कोरी नरियर चढ़े हे)
• बीस आमो का नग (बीस नग आमा के समूह) (गीने मा) - गंडा (सौ रुपया म के गंडा आमा देबे)
• गोहडी जानवरो का झुंड (रतन के घर म गोहडी गोहडी छेरी बोकरा हे)
इस प्रकार जब किसी प्राणी या वस्तु का झुंड या समूह का पता चलता है उसे समूहवाचक संज्ञा कहा जाता है।
5. भाव बाचक संगिया (भाववाचक संज्ञा) -
हिंदी - जिस शब्द से किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष, धर्म, दशा या भाव आदि का ज्ञान होता है उसे भाववाचक संज्ञा कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ी - जउन सब्द ले कोनो मनखे नइते वस्तु के गुन, बइगुन, धरम, दसा नइते भाव आदि के गियान होथे ओला "भाव बाचक संगिया" कहे जाथे। एकर ले अइसन गुन आदि के गियान होथे जेन ला मन के दुवारा अनभो तो करे जा सकथे फेर उन ला देखे अउ छुवे नइ जा सके। जउन मनखे नइते जिनिस मा अइसन गुन होथे ओला जरूर देखे, सुने अऊ छुवे जा सकथे।
उदाहरन - जाड़, गरमी, बईमानी, अकबकासी, रिस, मया, पिरीत, संसो, अंधियार, भूख, पियास, सियानी, उंघास आदि।
छत्तीसगढ़ी में भाववाचक संज्ञा का निर्माण जाति वाचक संज्ञा, विशेषण, क्रिया और अव्यय में प्रत्यय लगाकर किया जाता है।
जैसे -
जातिवाचक संज्ञा से >> लईका - लइकई, लइकापन, मितान - मितानी
विशेषण से >> मिठ - मिठास
क्रिया से >> दुबराना - दुबरई
अव्यय से >> हरर हरर - हरहरई खरर खरर - खरखरई
इस प्रकार से किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण तथा दोष धर्म, दशा, आदि का पता चलता है उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं जिसे महसूस तो कर सकते हैं, लेकिन नाप या गिन नहीं सकते हैं।
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