छत्तीसगढ़ी उपसर्ग
उपसर्ग किसे कहते हैं - उपसर्ग ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पूर्व
जुड़ कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं या उसके अर्थ में विशेषता ला देते
हैं। उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) का अर्थ है - किसी शब्द के समीप आ कर नया
शब्द बनाना। उदाहरण: प्र + हार = प्रहार, 'हार' शब्द का अर्थ है पराजय।
उपसर्ग के महत्व -
उपसर्ग के परयोग ले नवा सब्द तो बनथे, मगर ओखर संगे संग मा अर्थ घलो बदल जाथे,
जइसे - 'मरी' शब्द मा 'खु' उपसर्ग के जोड़े ले 'खुमरी' एक नवा सब्द बन गिस हे,
जेकर अर्थ - 'पानी घाम ले बाँचे बर बने एक किसम के टोपी' होथे। अइसने ढंग ले
'मरी' सब्द मा 'धु' उपसर्ग सब्द के जोड़े ले 'धुमरी' एक नवा सब्द बन जथे जेकर
अर्थ होथे - मोटी स्तिरी, अइसने मरी मा 'ब' उपसर्ग जोड़े ले 'बमरी' हो जथे जेकर
अर्थ होथे 'बंबरी' (बबूल पेंड), ए परकार ले अइसने सब्द बनथे अउ उंकर अर्थ घलो आने
- आने हो जथे।
उपसर्ग के परयोग करे ले सब्द मन के अर्थ मा अइसन ढंग ले परिवर्तन देखे बर
मिलथे -
1. उपसर्ग लगे ले सब्द के अर्थ मा बिसिस्टता आ जथे, जइसे- 'छेल्ला' के अर्थ होथे
'दूर - दूर' नइते 'अलग अलग'। एमा 'सु' उपसर्ग लगाय ले एकर रूप 'सुछेल्ला' हो जथे।
एकर अर्थ 'सुछंद' नइते 'सुतंत' होथे।
2. उपसर्ग कोनो सब्द के संग जुड़ के वोकर अर्थ के अनुगमन करथे अर्थात सुब्द मूल
भाव बने रथे, जइसे 'मंझनियाँ' मा 'सरी' उपसर्ग के जोड़े ले एकर रूप 'सरी
मंझनियाँ' होगे अउ अर्थ 'भरे दुपहरी' हो जथे। अइसने ढंग ले 'फोकट' मा 'बिन'
उपसर्ग जोड़े ले 'बिनफोकट' बन जथे, जेकर मतलब एकदम मुफत, होथे। अइसने 'रात' सब्द
मा 'सरी' उपसर्ग जोड़े ले 'सरीरात' सब्द बन जथे, जेकर अर्थ होथे 'पूरा रात'।
3. सब्द संग उपसर्ग जुड़े ले वोकर अर्थ कभू - कभू उल्टा हो जथे, जइसे - 'जस' सब्द
मा 'अप' उपसर्ग जोड़े ले - 'अपजस' सब्द बनिस, एकर अर्थ होथे 'बदनामी'।
A. छत्तीसगढ़ी के उपसर्ग -
छत्तीसगढ़ी के उपसर्ग अउ वोकर ले बने कुछ सब्द
जइसे उदहारन -
अक - अकबकागे, अकरस, अकताना
अटा - अटाटूट
कर - करलई
दर - दरचुरहा, दरसिखहा
उप - उपकाना, उपदरी, उपराल, उपकाल
अ - अछाम, अगम, असत्त, असगुन, असुध, अनकारज
अव - अवघट, अवगुन, अवसान
उ - उसनाल, उसना, उगोना
ओन - ओनतिस, ओनचालिस, ओनहारी, ओनचना
औ - औगुन, औघट, औबट
खड़ - खड़भुसरी, खड़खड़िया, खड़रोगहा, खड़बाज
तर - तरपउंरी, तरसाल, तरहटी, तरकहा
ति - तिकोनिया, तिगल, तिखार, तिलरी, तिहरा, तितरी
दु - दुबटा, दुबारा, दुमनहाँ, दुरंगिया, दुघेरा, दुखौंधिया, दुरघट,
दुर्दसा, दुरगत, दुमत
नन - ननजतिया, ननपन
अइन - अइनबखत, अइनबेरा
नि - निछवाना, निभाव, निघाव, निनासना, निमारना, निसत्ता
पन - पनउतार,पनछुटहा, पनलुका, पनहाना, पनसाओखना, पनकप्पड़
बइ - बइगुन, बइमान, बइराग
बि - बिसरान, बिपत, बिचेत, बिछौना, बिछाना, बिछलना
स - सखार, सगियान, सजन, समोना, सरस, सराब, सजाल
अब् - अब्बड़
अध - अधकच्चा, अधकपारी, अधनवां, अधखुला, अधमरहा, अधमोल हा, अधरतिया,
अधकहा, अधवन
अड़ - अडबड, अड़कट्टा
अन - अनचित, अनबरन, अनगढ़ल, अनकलइत, अनचिन्हार, अनजोखे, अनचाहित,
अनथहाव, अनसमझी, अनजतिया, अनचेत, अनफबित, अनगइहाँ, अनखहा, अनगोड़वा, अनभरोसी
आन - आनदरी, आनपारी, आनबखत, आनगाँव, आनकोती, आनबेरा, आनजात, आनपारा,
आनदिन
एक - एकटक, एकठउर, एकबोलिया, एकभांवर, एकसरिया, एक सस्सू, एकदरी,
एकजगा, एकपरत, एकपइत
कच - कचलोइहा, कचलगहा, कचनार, कचारना, कचर्रा
कन - कनघटोर, कनमनहाँ, कनसूर, कनटेटरा
कम - कमसरी, कमसलहा, कमचोर, कमजोर
गोड़ - गोड़तरिया, गोडधोवां, गोड़ - धोई
B. बिदेशी उपसर्ग -
ल - लवारिस, लचार, लपरवाह
न - नलायक, नराज, नपसद, नसमझ, नदान
गैर - गैरसरकारी, गैरहाजिर, गैरजुम्मेदार, गैरकानूनी
बद - बदचलन, बदमास, बदनाम, बदहजमी, बदबू
खुस - खुसबू, खुसहाल, खुसखभरी
हर - हररोज, हर चीज, हरसाल, हरदिन, हरपइत, हरदम, हरबखत
बै - बैमान, बैकुफ, बैपार
छत्तीसगढ़ी प्रत्यय
प्रत्यय किसे कहते हैं - प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के
अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते
हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता
है 'साथ में, पर बाद में' और अय का अर्थ होता है "चलने वाला", अत: प्रत्यय का
अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।
प्रत्यय काला कहीथे - सब्द के आखरी मा जुड़ के आने सब्द बनाथे आने
अर्थ के संग मा तेन ला "परत्यय" केहे जाथे। अरथात केहे जाय ता जेन सब्द हा कोनो
सब्द के आखरी मा जुड़थे अऊ ओखर अर्थ बदल देथे परत्यय कहलाथे। परत्यय दू सब्द ले
मिलके बने हे "प्रति" अउ "अय, ए सब्द हा संस्किरित भाखा के सब्द आय। प्रति के
मतलब होथे 'संग मा' अऊ अय के मतलब होथे 'चलइया'। अरथात केहे जाय ता सब्द मनके संग
मा चलइया सब्द अंस ला परत्यय केहे जाथे। जइसे जर + ई = जरई, खा + वत = खावत आदि।
छत्तीसगढ़ी प्रतत्य के प्रकार -
छत्तीसगढ़ी मा परत्यय के तिन भेद होथे -
A. किरित (कृत) परत्यय
B. बियुत्पादक परत्यय
C. तद्धित परत्यय
A. किरित (कृत) परत्यय -
किरिया नइत्ते धातु के आखरी मा जुड़इया परत्यय ला 'किरित परत्यय' केहे जाथे। अउ
एकर संजोग ले बने किरिया नइते धातु के नवाँ रूप ला किरदंत ( कृदंत ) केहे जाथे।
जइसे उदहारन -
भाखा (धातु) + अइ (किरित परत्यय)
= भखई (भाखा के भाव, गोठियई)
जाना (किरिया) + वइया (किरित परत्यय)
= जवइया (जानेवाला)
किरित परत्यय के संजोग ले बने सब्द मन संगिया नइते बिसेसन के रूप मा होथे।
किरदंत के परकार -
किरदंत घलो पांच परकार के होथे
i. करती ( कर्तृ ) बाचक किरदंत
ii. करम बाचक किरदंत
iii. करन बाचक किरदंत
iv. भावभाचक किरदंत
v. किरिया बाचक किरदंत
i. करती (कर्तृ) बाचक किरदंत - जउन किरिया ले करइया के गियान होथे
वोला करती बाचक किरदंत केहे जाथे। एकर परत्यय - इया, इहा, उक, वइया, हार, अंता,
हारिन, हा, हिन, इन इयाश आदि आवय।
जइसे उदहारन -
अंता - बोलंता, खेलंता, पढंता, चलंता
आरी / आड़ी - भिखारी, खेलाड़ी, जुवाड़ी, तुतारी,
सिकारी
इया - जवइया, रेंगइया, पकड़इया, भगइया, परदेसिया, बिदेशिया
इयारा - हटियारा, कटियारा, अधियारा
इहां - कँवरिहा, नगरिहा, गवइहा, जवइहा, रहइहा
उक - उड़ानुक, बोलुक, सोचुक, चुलुक, सुलुक
उर - खुसुर, फुसुर
एड़ी - भंगेड़ी, गँजेड़ी, नसेड़ी
हा - छेरकहा, ढेरहा, जरहा, भोरहा, बजरहा, सरहा, रोगहा
हार - रूखहार, बनिहार, मनिहार, भुतिहार
हारिन - शुतिहारिन, बोझहारिन, पनिहारिन
ii. करम बाचक किरदंत - वो किरदंत जेकर ले समान्य भूतकाल के गियान
होथे अउ सकरमक किरिया मा "ए" के परयोग होथे 'करम बाचक किरदंत' कहलाथे।
जइसे उदहारन - खड़े, दउँड़े, बइठे आदि।
iii. करन बाचक किरदंत - किरिया के साधन के गियान करइया परत्यय ला
'करन बाचक किरदंत' केहे जाथे।
जइसे उदहारन -
चन्नी - चाले के साधन
छन्नी - छाने के साधन
कोरनी - कुरेदे के साधन
पनहीं - पैर मा पहिरे के साधन
iv. भाव वाचक किरदंत - जउन किरदंत ले कोनो भाव नइते किरिया के बेपार
(व्यापार) के गियान होथे वोला 'भाव बाचक किरदंत' केहे जाथे।
जइसे उदहारन - पहिरावा, देखावा, रेंगई, हँफरासी, उधासी आदि।
v. किरिया बाचक किरदंत - जउन किरदंत ले कोनो किरिया होय के गियान
होथे वोला 'किरिया बाचक किरदंत' केहे जाथे।
जइसे उदहारन -
दउँड + त = दउँड़त
जा + वत = जावत
बइठ + त = बइठत
चढ़ + इस = चढ़िस
खा + वत = खावत
खन + ही = खनही
B. बियुत्पादक परत्यय -
किरिया पद के आखरी ध्वनि ला निकाले के बाद जउन अंस बाचे रहिथे अउ कहूँ अर्थवाले
रथे तब वोकर ले निकले आखरी ध्वनि ला 'बियुत्पादक परत्यय' केहे जाथे, जइसे - फरा
के आखरी ध्वनि 'आ' ला निकाले ले फर भर सब्द बाँचे रथे। 'फर' के अर्थ हे एकर सेती
'फरा' ले निकले 'आ' सब्द हा बियुत्पादक परत्यय आय।
जइसे उदहारन -
घुंच + आ - घुंचा
रेंग + आ - रेंगा
पहिर + वा - पहिरवा
छांट + आ - छंटा
पि + आ - पिया
छु + वा - छुवा
टोर + वा - टोरवा
धर + वा - धरवा
फांक + वा - फंकवा
भाग + वा - भगवा
हट + वा - हटवा
भोक + वा - भोकवा
C. तद्धित परत्यय -
संगिया नइते बिसेसन के आखरी मा लगइया परत्यय ला तद्धित परत्यय केहे जाथे। अउ
तद्धित के जुड़े ले बने सब्द ला तद्धितांत।
जइसे उदहारन -
अम्मट + अइन - अम्मटइन
अइंठ + अइया - अइंठइया
बइठ + अइया - बइठड्या
रिस + अई - रिसई
चतुर + अई - चतुरई
बइठ + अउनी - बइठउनी
पुरखा + अउती - पुरखउती
चढ़ावा + अउती - चढ़उती
कांट + अउनी - कंटउनी
अंइठ + अन - अंइठन
भाग + अल - भागल
भूख + अन - भूखन
पातर + आना - पतराना
सुत + अल - सुतल
खभर + इया - खभरिया
सील + आवल - सिलावल
रेंग + आवल - रेंगावल
कंझट + आसी - कंझटासी
हंफरई + आसी - हंबरासी
नियाय + इक - नियइक
चंडाल + इन - चंडालिन
जिद्द + इन - जिद्दिन
रायपुर + इया - रयपुरिया
पहर + इया - पहरिया
काठ + इयाना - कठियाना
रत + इयाना - रतियाना
रेंग + इस - रेंगिस
भाग + इस - भागिस
ओत + इहा - ओतिहा
मुत + इस - मुतिस
मांदर + इहा - मंदरिहा
चंदोर + ई - चंदोरी
अंजोर + ई - अंजोरी
नानक + उन - नानकुन
चिटिक + उन - चिटिकुन
पीछु + ओत - पिछोत
घट + कार - घटकार
फट + कार - फटकार
नाच + कार - नचकार
चल + ना - चलना
गीत + कार - गीतकार
जर + ना - जरना
भर + ना - भरना
टोक + ना - टोकना
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