जैसे उदाहरण - 'किराने सामान का दुकान' इसे अगर छोटे शब्दों में
कहा जाए तो किराना दुकान, मतलब छोटे शब्दों में बड़े अर्थों का प्रकट होना ही
समास है।
छत्तीसगढ़ी में समास किसे कहते हैं -
छत्तीसगढ़ी समास का अर्थ और परिभाषा - जब दू नइते दू ले जादा सब्द मिल के
कोनो नवाँ सब्द बनथे तब ओला 'समास' केहे जाथे। समास के अर्थ होथे
'संछेप'। समास के उद्देस होथे एकदम कम सब्द मा जादा ले जादा भाव परगट
करना।
जइसे - तुलसी - चौंरा (तुलसी का चौंरा) यानि के तुलसी का
चबूतरा। इंहा तुलसी अऊ चौंरा अलग अलग दु सब्द हरे जेखर केहे ले तुलसी
पेंड़ के चौंरा होय के जनकारी होवत हे।
अर्थात केहे जाय ता बड़े बड़े सब्द के जगहा मा छोटकन सब्द के दुवारा कोनो
बात के अर्थ ला समझाना मतलब 'समास' हरे।
छत्तीसगढ़ी में समास विग्रह -
कोनो उद्देस ला पूरा करे खातिर कमती सब्द ले बने नवाँ सब्द ला समस्त पद
नइते समासिक पद केहे जथे। समासिक पद मा विभक्ती मन के लोप हो जथे। लुप्त
विभक्ती मन ला परगट करे खातिर जब समासिक पद के बिच्छेद करे जाथे तब ओला
समास बिगरह कथे। समस्त पदों को अलग - अलग पृथक पृथक किया जाए तब समास विग्रह कहलाता
है।
छत्तीसगढ़ी समास समास के प्रकार -
जिस तरह से हिंदी भाषा व्याकरण में समास 6 प्रकार के होते हैं ठीक उसी
तरह के छत्तीसगढ़ी व्याकरण में भी समास 6 प्रकार के होते हैं -
1. ततपुरुस समास
2. अबिययी भाव समास
3. करम धारय समास
4. दिगु समास
5. बहुबिरही समास
6. दुवंद समास
1 . ततपुरुस समास -
ततपुरुस समास के दुनों पद बिसेस्य होथे। छत्तिसगढ़ी मा ततपुरुस समास के
पहिली पद अर्थ के बिचार ले परधान होथे पहिली पद के संग करता अउ सम्बोधन
कारक ला छोड के बाँकी जम्मो कारक के बिभक्ती मन आ सकथे। अर्थात तत्पुरुष
समास में पूर्व पद गौण और उत्तर प्रधान होता है तत्पुरुष समास के दोनों
पदों के बीच में परसर्ग का लोप रहता है। ततपुरुस समास के घलो अऊ परकार
होथे, जम्मो विभक्ती अउ उपयोग मा आय अबियय के आधार मा ततपुरुस समास के आठ
भेद होथे -
A. करम ततपुरुष
B. करन ततपुरुष
C. संपरदान ततपुरूष
D. अपादान ततपुरूष
E. सम्बन्ध ततपुरूष
F. अधिकरन ततपुरूष
G. स्थान, काल अऊ मातरा बाचक ततपुरूष
H. नइ (नञ) ततपुरूष
A. करम (कर्म) ततपुरुस - करम ततपुरूष समास मा पहिली पद करम
कारक के बिभक्ती ले युक्त रहिथे।
जइसे उदहारन -
1. खेतजोतईया - खेत ला जोतईया (खेत जोतने वाला)
2. भात - रंधइया - भात ला रंधइया (खाना बनाने वाला)
3. दीया - बरइया - दीया ला बरइया (दीपक जलाने वाला)
4. सतभखारी - सत ला भखइया (सत्य को बोलने वाला)
5. कठखोलवा - काठ ला खोलइया (लकड़ी को खोदने वाला)
B. करन तत्पुरुस - करन ततपुरूष समास मा पहिली पद करन कारक के
विभक्ती ले युक्त रहिथे।
जइसे उदहारन -
1. देंहगिरी - दूसर के देहें ले चिपके रहइया (दूसरे के शरीर से लिपटा
रहने वाला)
2. बानमारे - बान ले मारे (बाण से मारा हुआ)
3. लोकवामार - लोकवा ले पीड़ित (लकवा - पीड़ित)
C. संपरदान तत्पुरुस - संपरदान ततपुरूष समास मा पहिली पद
संपरदान कारक के बिभक्ती ले युक्त रथे।
जइसे उदहारन -
1. गरूवा - कोठा - गरूवा बर कोठा (जानवरों के रहने के लिए जगह)
2. पनियाँ - अंकाल - पानी के कारन अंकाल (पानी के कारण अकाल)
3. झुक्खा - अंकाल - झुक्खा के कारन अंकाल (सूखे के कारण अकाल)
4. जाँता - कुरिया - जाँता बर कुरिया (आटा चक्की के लिए कमरा)
5. रंधनी - खोली - खाना रांधे बर खोली (खाना बनाने का एक कमरा किचन)
D. अपादान तत्पुरुस - अपादान ततपुरूष समास मा पहिली पद
अपादान कारक के बिभक्ति ले युक्त रथे।
जइसे उदहारन -
1. गांव - निकाला - गांव ले बाहिर (गांव से बाहर निकाला जाना)
2. जात - बाहिर - जात ले बाहिर (जाति से निकला या निकाला हुआ)
3. मनुख - बाहिर - मनखे ले बाहिर (मनुष्यों से अलग)
4. परवा - कूदे - परवा ले कूदे (छाजन) (छज्जा) से कूदा हुआ)
E. सम्बन्ध तत्पुरुस - सम्बन्ध ततपुरूष समास मा पहिली पद
सम्बन्ध कारक के विभक्ती ले युक्त रथे।
जइसे उदहारन -
1. धान - कोठी - धान के कोठी (धान रखने की जगह)
2. तुलसी - चौरा - तुलसी के चौरा (तुलसी का चबूतरा)
3. गंगा के बारू - गंगा की बालू (गंगा नदी का रेत)
4. गोदरी - सूंत - गोदरी सिले के सूत (रजाई सीने का धागा)
F. अधिकरन तत्पुरुस - अधिकरन ततपुरूष समास मा पहिली पद
अधिकरन कारक के बिभक्ती ले युक्त रथे। जइसे उदहारन -
1. सरगबासी - जेन सरग पधार चुके (जिसकी मौत हो गई हो)
2. ठाढ़े - खड़े - ठाढ़े मा खड़ा (सीधे में खड़ा होना)
3. छान्ही - मूते - छान्ही मा मुते (जादा अतलंग करना)
4. पानी - बूड़े - पानी मा बूड़े (पानी में डूबा हुआ)
5. करजा - बूड़े - करजा मा बूड़े (कर्ज में डूबा हुआ)
6. गंगा - असनान - गंगा मा असनान (गंगा में स्नान)
G. स्थान, काल अउ मातरा बाचक तत्पुरुस - एकरले स्थान, काल अउ
मातरा के गियान होथे। अइसन समासिक पद मा दुनों सब्द के बीच मा 'भर' शब्द
ला उपयोग जादा करे जाथे।
जइसे उदहारन -
1. मुठा - भर - धान - एक मुठा के भर धान (एक मुटठी धान)
2. रात - भर - उसनिंदा - पूरा रात के जगवारी (पूरी रात जागना)
3. गाँव - भर- ढिंढोरा - पूरा गाँव मा गोहार (पूरे गांव में हल्ला)
4. पसर के भरत ले चाउर (दोनों हाथ भर पसर - भर - चाउँर चावल)
5. टोंटा - भर- पानी - टोंटा के आवत ले पानी (गले तक पानी)
H. नइ (नञ) तत्पुरुस - नइ ततपुरुस समास के पहिली पद मा अन,
अ, बिन, आन, ऊ (आदि) सब्द मन के उपयोग करे जाथे।
जइसे उदहारन -
1. अनबरन - जेकर कोई बरनन नइ हे (जिसकी कोई वर्णन नहीं है)
2. बिनदांत - बिना दांत के (दांत के बगैर)
3. आनजात - आने जात के (दूसरी जाति का)
4. आनगांव - दूसर गांव (दूसरा अलग गांव)
5. बिनबादर - बिना बादर के (बादल के बगैर)
6. बिनजठना – बिना जठना के (बिछावन के बिना)
7. आनघर - दूसर घर (दूसरों के घर)
8. अनचिन्हार - बिन पहिचान के (बगैर जान पहचान के)
2. अबिययी भाव समास -
छत्तिसगढ़ी मा अबिययी भाव समास के कोनों एक पद परधान होथे अऊ पूरा पद हा
बिसेसन नइते किरिया - बिसेसन अबियय जइसे उपयोग मा आथे। अर्थात अव्ययी भाव
समास वाक्य में क्रिया विशेषण का कार्य करता है, इस समास में पूर्व पद
अव्यय होता है। एला के कतिहाँ (कहाँ), कतिक (कितना), कइसे (कैसे), काबर
(क्यो), कोनला (किसे) आदि परस्न मन के उत्तर के रूप मा पहिचाने जा सकथे,
जइसे 'नफा - नकसान ले अपन ला मतलब नइ राहय'। ये वाक्य मा 'अपन' मतलब कोन
ला नइ राहय के उत्तर आय। सधारन रूप मा ये समास अबियय अउ संगिया सब्द ला
जोड़े ले बनथे। ये सब्द मन ला नीचे लिखे तिन विधि ले जोड़ के अबिययी भाव
समास बनाए जा सकथे।
जइसे उदहारन -
i. पहिली पद मा अबियय अऊ दूसरा पद मा संगिया जोड़े ले -
आड़ी + काड़ी = आड़ीकाड़ी, कुच्छुच नीही (कुछ भी नहीं)
गरि + यार = गरियार, निच्चट अलाल (निकम्मा)
चिन् + हार = जाने - पहिचाने (परिचित)
अगम + दहरा = अगम दहरा ( बहुत गहरा )
ii. अबियय पद के दुबारा उपयोग करे ले -
हाय - हाय (चिंतित)
सांय - सांय (हड़बड़ी)
टांय - टांय (बिकट बोलना)
लउहा - लउहा (जल्दी - जल्दी)
लकर - लकर (जल्दी - जल्दी)
आने - आने (अलग अलग)
हरर - हरर (तेज हवा चलना)
ठांय - ठांय (ठन ठन)
एकधऊआँ - एकधउआँ (बार - बार)
iii. संगिया पद के दुबारा उपयोग करे ले -
डारा - डारा = (हर डाल) डाल डाल पर
ठउर - ठउर = (हर जगा) जगह जगह पर
खाँधा - खाँधा = (हर खाँधा) कंधे कंधे पर
रूख - रूख = (हर रूख) पेंड़ पेंड़ पर
गांव - गांव = (हर गांव) गांव गांव में
पांव - पांव = (हर पांव) पांव पांव में
3. करम धारय समास -
बिसेसन अऊ बिसेसस्य के संजोग ले बने समास ला 'करम धारय समास' केहे जाथे।
करम धारय समास मा कभू पहिली पद ता कभु दूसरा पद अउ कभू ता दुनों पद
बिसेसन होथे अथवा कभू पहिली, कभू दूसरा पद अट कभू दुनों पद बिसेस्य होथे।
अर्थात कर्मधारय समास में उत्तर पर प्रधान होता है जिसमें पूर्व पद
विशेषण और उत्तर प्रद विशेष से होता है।
जइसे उदहारन -
i. पहिली पद बिसेसन अऊ दूसरा पद बिसेस्य -
बिलई - टुरी - (करिया मुहरन के टूरी) काली लड़की
बिलवा - टुरा - (करिया मुहरन के टूरा) काले रंग का लड़का
धांवरा - बइला - (सफेद रंग बइला) सफेद रंग का बैल
छोटकी - बहुरिया - (सबले छोटे बहू) घर की सबसे छोटी बहू
दोलखा - खटिया - (ढिल्ला गंथाए खटिया) ढीला ढाला कसा हुआ खाट
बिसेस - बिसेसन के रूप मा पहिली पद कहूँ 'खराब'अर्थवाले होथे
तब ओकर वर 'कु' के उपयोग करे जाथे।
जइसे उदहारन -
कुरीत - खराब रीति (गलत रीति रिवाज)
कुमारग - खराब रद्दा (गलत रास्ता)
कुनीत - खराब नियम (गलत नियम)
कुठउर - खराब जगा (गलत जगह)
कुमति - खराब मति (खराब दिमाग)
कुपात्र - अपात्र मनखे (अपात्र व्यक्ति)
ii. पहिली पद बिसेस्य अउ दूसरा पद बिसेसन -
खोर-गिंजरा - गली गली घुमइया (फालतू घूमने वाला)
भंइस्सा-भाकुर - भंइसा कस धीरमति वाला (भैंसा जैसा धीरमति)
घर खुसरा - घर भीतर खुसरे रहइया (हमेशा घर में रहने वाला)
पन-बुडी - पानी मा बुड़े रहइया (पानी में डूबे रहने वाला)
पेटबोजना - बिकट के खवइया ( अधिक खाने वाला)
iii. दुनों पद विसेसन -
दुहरी - देंहे - जेन बने मोटाये रथे (हष्ठपुष्ट शरीर वाला)
जांगर - चोट्टा - कुछ काम बुता ले लुकाथे (काम करने सेजी चुराना)
पियंर - पातर - जउन निच्चट रेगड़ा हे (एकदम पतला - दुबला)
कनवा - खोरवा - जउन काहीं बता नई कर सकय (जो कुछ भी काम नहीं कर सकता)
आघू - पाछू - आसेपास मा (आस पास रहना)
बिसेस - धियान राखे के बात ये हावे के दुनो पद विसेसन वाले
करम धारय समास के बिगरह मा दुनो पद के बीच 'अउ' (और) संयोजक अबियय के
परयोग नइ होना चाही, अर्थात् दुनों पद बिसेसनेच बने राहय, संगिया के रूप
मा परयोग झन होवय, जइसे नाप - जोख के खवइया घलो बीमारी के मारे पियर -
पातर होंगे। ये कना पियर- पातर के अर्थ है - 'निच्चट रेगड़ा'। अइसन ढंग
ले ये समासिक सब्द के दुनो पद ये कना विसेसनेच है।
iv. दुनों पद विसेस्य -
फूल - फर - फूल अऊ फर (फल और फूल)
खिड़की - दरवाजा खिड़की अऊ दरवाजा (खिड़कियां और दरवाजे)
चना - गहूं - चना अऊ गहूं (चना और गेहूं)
दार - भात - दार अऊ भात (भात और दाल)
चाउर - दार - चाउँर अउ दार (चावल और दाल)
डारा - पाना - डारा अउ पाना (पेड़ की डाली और पत्ती)
नदिया - नरवा - नदिया अउ नरवा (नदी और नाला)
4. दिगु समास -
दिगु समास मा समासिक सब्द के पहिली पद संखियावाचक अऊ दूसरा पद परधान
होथे। ये समास ले कोनों जिनिस के समूह मा होय के गियान होथे, अर्थात
द्विगु समास का पहला पद संख्यात्मक यानी कि संख्यावाचक होता है।
जइसे उदहारन -
नवरातरी - नव दिन अउ रात के समे (नौ दिन और रातों का समूह)
छत्तीसगढ़ – छत्तिस ठन गढ़ के जगा ( छत्तीस गढ़ों का जगह)
दूमुहानी - दू मुह या रद्दा के जगा ( दो तरफा रास्ता या जगह)
तितरा - निचत पातर (पतला दुबला)
दुमुहा - दू मुहु वाला (दो मुह वाला)
पंचहर - पांच जात के बर्तन (पांच प्रकार का बर्तन)
पंचहत्था - पांच हांत के जिनिस (पांच हाथ का वस्तु)
नवदुर्गा - दुर्गा माता के नव अवतार (माता दुर्गा के नौ अवतार)
चौकोन - चार कोन वाला (चार कोने वाला चौकौना)
तिरबेनी - तीन नदियां मन के समुह (तीन नदियों का संगम)
पंचरतन - पांच रतन के एक समूह (पांच रत्नों का समूह)
पंचपेडिया - जिहाँ पाँच पेड़ के समूह रथे (पांच पेड़ों का समूह)
सतबहिनी - सात सग्गे बहिनी (सात सगी बहनें)
तिनसियान - तिन गाँव के सियान मिले के जगा (तीन मुखिया के जमा होने का
जगह)
बारामाशा - बारह मास के समे (बारह माह)
सतकोसा - सात कोस के रहइया (सात कोस का रहने वाला)
पंचरंगा - पांच रंग के जिनिस (पांच रंगों वाला)
5. बहुबिरही समास -
बहुबिरही समास मा सब्द के दुनों पद परधान नइ हो के कोनों आने संगिया हा
परधान होथे। अर्थात् ये समास के दुनों पद हा आने संगिया के बिसेसन
होथे। हिंदी में - बहुव्रीहि समास में दोनों पद प्रधान
नहीं होते बल्कि दोनों के जगह पर तीसरा का बोध होता है।
तत्पुरुस अउ बहुबिरही समास मा अंतर - ये दुनों समास मा परमुख
अन्तर बिगरह के होथे। तत्पुरुस समास मा पहिली पद दूसर पद के बिसेसन होथे,
जबकि बहुबिरही समास मा दुनों पद मिल के कोनों आने संगिया के बिसेसन बन
जथे, जइसे 'दीया बरइया' तत्पुरुस समास आय। कहुँ एकर बिगरह करे
जाए जइसे - जेकर ले बंस ला बढाए जाथे तउन, माने -
'बेटा' करे जाय तब ये हा बहुबिरही समास हो जही, अर्थात् बहुबिरही समास अउ
तत्पुरुस समास के बिगरह मा अन्तर होय ले उँकर अर्थ मा घलो अंतर हो जथे।
बहुबिरही समास पाँच परकार के होथे -
i. समानाधिकरन बहुबिरही समास
ii. सह बहुबिरही समास
iii. ब्यतिहार बहुबिरही समास
iv. परादि बहुबिरही समास
v. मध्यपद लोपी बहुबिरही समास
i. समानाधिकरन बहुबिरही समास - ये समासिक सब्द करता कारक के
बिभक्तीवाले होथे फेर समस्त पद ले जेकर बिसय मा केहे जाथे वो हा करता अउ
संबोधन कारक ला छोड़ के बाँकी जम्मो कारक के विभक्ती मन ले जुड़े रहि
सकथे।
जइसे उदहारन -
घर रखा - जउन हा घर ला राखथे, माने - छिपकिली (घर की रक्षा करने वाला)
कुलतारक - जउन हा कुल ला तारथे, माने - बेटा (वंश को आगे बढ़ाने वाला
यानी कुल तारने वाला)
ओंगनतेल - जउन तेल ले गाड़ा ओंगे जाथे, माने- अंडीतेल (गाड़ीयों में
डालने वाला आयल)
छेवारीलाडू - छेवारिन बर जरी - बूटी ले बनाय लाडू माने ओसहा - लाडू
(बच्चे जनने के बाद मां के लिए बनाने वाले तरह का पौष्टिक लड्डू)
लबडेना – हाँत ले फटिक के जउन लकड़ी ले मारे जाथे, माने- लबेदा (हाथ से
फेक कर डंडे से मारना)
माटीपुत - जउन पूत हा भाटी के सेवा करथे, माने - किसान (जो मिट्टी रानी
धरती माता की सेवा करता है)
पनबुडी - जेन हा पानी मा बुड़े रथे , माने- नाकर - चिरई (ऐरी चिरई) पानी
में डूबे रहने वाली एक चिड़िया।
ii. सह बहुबिरही समास - जउन समासिक सब्द के पहिली पद 'सह'
होथे वोला 'सह बहुबिरही समास' केहे जाथे। 'सह' के अर्थ होथे - 'सहित'।
फेर ये समासिक सब्द मा उपयोग होय ले 'सह' के केवल 'स' भर हा परयोग मा
आथे। धियान देय के बात यह हाबे के ये समास के बिगरह करे मा पहिलो पद 'स'
(सहित) अपन जगा ले सरक के दूसर पद बन जथे।
जइसे उदहारन -
सजोर - जउन मा जोर जादा हे तउन माने ताकतवर (जिसमे अधिक ताकत है)
सगियान - जउन गियान के सहिंत हे तउन, माने सुजानिक (सुजान और ज्ञानी
व्यक्ति)
सकरी - जउन करी - करी रूप मा हे तउन, माने सांकड़ (कड़ी कड़ी से बना हुआ -
जंजीर)
सखार - जउन मा खार (नमक) जादा हे तउन, माने नमकीन (जिसमें नमक ज्यादा हो)
iii. ब्यतिहार बहुबिरही समास - जउन समासिक सब्द मा परस्पर
सापेच्छ, किरिया मन ला परगट करे खातिर एके पद ला दुहरा दे जाथे, एला
'ब्यतिहार बहुबिरही समास' कथे।
जइसे उदहारन -
चुमिक - चूमा - एक दुसर ला चुमई (एक दुसरे को चूमना)
देवईक - देवा एक दूसर ला देना (एक दूसरे को देना)
खवईक - खवा - एक दूसर ला खवई (एक दूसरे को खाना खिलाना)
मारिक - मारा - एक दूसर ला मरई (एक दूसरे से मारपीट करना)
ढकेलिक - ढकेला - एक दूसर ला धकियई (एक दूसरे से - धक्का - मुक्की करना)
धरिक धरा - एक दूसर ला धर के मार - पीट करई (एक दूसरे को पकड़ मार पीट
करना)
iv. परादि बहुबिरही समास - जउन बहुबिरही मा पहिली पद उपसर्ग
होथे 'परादि बहुबिरही समास' कहलाथे।
जइसे उदहारन -
परदेसी - दुसर देस के हरे जेन, माने - बिदेसी
परगोत्री - दुसर गोत के जेन, माने -परगोतियारी
निरमोही - नइहे मोहो जेन ला, माने- निठुर
निरबंसी - नइहे बंस बढ़इया जेकर, माने ठगड़ा
परखत्ता - पर के ला खाथे जउन, माने - अपखया
v. मध्यपद लोपी बहुबिरही समास - छत्तीसगढ़ी मा अइसनो कतको
समासिक सब्द हावें जेकर बिगरह मा अवइया पद मन के अभाव रथे। एला मध्य लोपी
बहुबिरही समास केहे जा सकथे।
जइसे उदहारन -
धिरलगहा - सहातु सहातु रेंगथे तउन, माने - अललरहा
खेतिहर - खेती बर हार डरे हे जम्मो जिनिस ला तउन, माने - किसान
कनघटोर - कान ले सुन के घलो घटकारी करथे तउन माने -घटकार
बनिहार - बनी करके खाथे कमाथे तउन माने - मजदुर
जरमुहां - जलन के गोठ निकलथे जेकर मुहूँ ले तउन, माने - जलनहा
6. दुवंद (द्वन्द) समास -
दुवंद सब्द के अर्थ होथे - जोंड़ी, जब दू आने आने पद जोड़ी के रूप मा आथे
अउ उँकर बिगरह खातिर 'अऊ' (और) नइते (या) आदि अबियय मन के उपयोग होथे तब
अइसन सब्द मन ला 'दुवंद समास' केहे जाथे। दुवंद समास मा दुनो पद परधान
होथे, ये मन संगिया नइते बिसेसन के जोड़ी घलो हो सकत है। द्वंद समास में
पूर्व पद और उत्तर पद दोनों प्रधान होता है और दोनों का स्वतंत्र रूप से
अस्तित्व भी होता है और इसके मध्य जो संयोजक होता है उसका लोप हो जाता।
दुवंद समास परकार के होथे -
A. बैकल्पिक दुवंद समास
B. इतरेतर दुवंद समास
C. समाहार दुवंद समास
A. बैकल्पिक दुवंद समास - दू विपरित अर्थ वाले सब्द मन के
जुड़े ले बने सब्द ला 'बैकल्पिक दुवंद समास' केहे जाथे। इंकर दुनो पद के
बीच मा 'नइते' बिकल्प बोध के अबियय लुकाय रहिथे। एकरे सेती एला बैकल्पिक
दुवंद समास कहे जाथे।
जइसे उदहारन -
चुटकी - चुटका - चुटकी नइते चुटका
जंगल - झाड़ी - पहाड़ - जंगल झाड़ी नइते पहाड़
चाय - पानी - चाय नइते पानी
कांदा - बरी - कांदा नइते बरी
छेरी - बोकरा - छेरी नइते बोकरा
एक - दूठन - एक नइते दुठन
थोरिक - बहुत - थोरिक नइते बहुंत
बइला - भइँस्सा - बइला नइते भइंस्सा
खातू - कचरा - खातू नइते कचरा
चोरी - चकारी - चोरी अउ चकारी
B. इतरेतर दुवंद समास -जउन दुवंद के दुनों पद के बिगरह 'अउ' (और)
संयोजक अबियय के सहियोग ले करे जाथे अउ हरेक पद के अलग अलग अस्तित्व होथे
तब एला 'इतरेतर दुवंद समास ' केहे जाथे।
जइसे उदहारन -
पितर - गोतर - पितर अउ गोतर
सास - पतो - सास अउ ससुर
दाई - ददा - दाई अऊ ददा
दाई - देवता - दाई अऊ देवता
टुरी - टुरा - टुरी अऊ टुरा
कमरा - खुमरी - कमरा अउ खुमरी
महतारी - बेटा - महतारी अउ बेटा
तसमई - सोहारी - तसमई अउ सोझरी
बरा - भात - बरा अऊ भात
माई - पिल्ला - माई अउ पिल्ला
C. समाहार दुवद समास - समाहार के अर्थ होथे 'समूह' अइसन
दुवंद जेकर दुनों अउ (और) संयोजक अवियय ले जुड़े रथ फेर वो पद मन के अलग
- अलग अस्तित्व नइ राहय, भलुक समूह के गियान कराथे तब ओला 'समाहार दुवंद
समास' केहे जाथे। समाहार दुवंद मा दुनों पद के अतिरिक्त अउ आने पद घलो
होथे जउन हा लुकाय रथे। ये लुकाय वाले पद के अर्थ - गियान अपरतीयच्छ
(अप्रत्यक्ष) रूप ले होथे।
जइसे उदहारन -
नाली - नरवा - नाली अउ नरवा
कोठार - बारी - कोठार अउ बारी
कांटा - खूंटी - कांटा अउ खूंटी
दार - भात - दार अउ भात
तरिया - डबरी - तरिया अउ डबरी
रुख - राई - रुख अउ राई
दही - मही - दही अउ मही
पारा - परोस जगा - पारा अउ परोस
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