छत्तीसगढ राज्य अपने अद्वितीय लोक कला एवं संस्कृति के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। राज्य में अनेक प्रकार के त्यौहार एवं पर्व मनाये जाते है जो समाज द्वारा मान्य है। छत्तीसगढ़ प्रदेश आदिवासी क्षेत्र है अपनी सुंदरता और अद्वितीय जनजातीय आबादी के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। शायद इसी कारण त्योहारों की अधिकता इस राज्य की संस्कृति की विशेषता है। छत्तीसगढ़ के त्योहारों में एकजुटता और सामाजिक सद्भाव की भावना का अनुभव किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में प्रमुख त्यौहार व पर्व शामिल है -
छत्तीसगढ़ के त्यौहार व पर्व एवं प्रमुख तिथियाँ
माह | तिथि एवं पर्व |
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चैत्र / चैत | • शुक्ल पक्ष नवमी - रामनवमी • सरगुजा क्षेत्र में सरहुल एवं बस्तर क्षेत्र में माटी त्यौहार • गोबर बोहरानी • चैतरई पर्व |
बैसाख | • शुक्ल पक्ष तृतीया - अक्ति / अक्षय तृतीया • पुतरा - पुतरी विवाह • किसानों द्वारा बीज बोआई का शुभारंभ |
ज्येष्ठ / जेठ | • शुक्ल पक्ष दशमी - गंगा दशहरा • भीमा जात्रा - बस्तर अंचल में भीमादेव (इंद्र) की पूजा • इस माह में मामा अपने भांजे को दान करते है। |
आषाढ़ | • शुक्ल पक्ष द्वितीय - रथ यात्रा (रथ द्वितीया) • गोंचा पर्व (जगदलपुर) • बीज बोहनी पर्व - कोरवा जनजाति द्वारा |
सावन / श्रावण | • अमावस्या - हरेली • शुक्ल पक्ष पंचमी - नागपंचमी • शुक्ल पक्ष नवमी से पूर्णिमा तक - कजरी त्यौहार • पुर्णिमा - रक्षाबंधन |
भादो / भाद्रपद | • कृष्ण पक्ष प्रथमा - भोजली विसर्जन • कृष्ण पक्ष चतुर्थी - बहुरा चौथ • कृष्ण पक्ष षष्ठी - हलषष्ठी / कमरछठ • कृष्ण पक्ष अष्टमी - जन्माष्टमी • अमावस्या - पोला • शुक्ल पक्ष तृतीया - हरितालिका • शुक्ल पक्ष चतुर्थी - गणेश चतुर्थी • शुक्ल पक्ष पंचमी - ऋषि पंचमी • शुक्ल पक्ष सप्तमी - संतान साते • पूर्णिमा - नवाखाई (नवाखाना) |
कुवांर / आश्विन | • कृष्ण पक्ष - पितर पक्ष • शुक्ल पक्ष प्रथमा से नवमी - नवरात्रि • शुक्ल पक्ष दशमी - दशहरा / विजया दशमी • पूर्णिमा - शरद पूर्णिमा • कोरा पर्व - कोरवा जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला पर्व |
कार्तिक | • कृष्ण पक्ष तेरस - धनतेरस • कृष्ण पक्ष चतुर्दशी - नरक चौदस • अमावस्या - दीपावली (देवारी) • शुक्ल पक्ष प्रथमा - गोवर्धन पूजा • शुक्ल पक्ष द्वितीया - भाई दूज • शुक्ल पक्ष नवमी - आंवला पूजा • शुक्ल पक्ष एकादशी - देवउठनी एकादशी / जेठउनी • मातर त्यौहार - गोवर्धन पूजा के बाद यादव समुदाय द्वारा मनाया जाता है। • गौरा - गौरी पर्व - दीपावली के समय मनाया जाता है। |
अघ्घन / मार्गशीर्ष | • प्रत्येक गुरुवार - लक्ष्मी पूजा |
पूस / पौष | • शुक्ल पक्ष एकादशी - बड़े भजन का रामनामी मेला • शुक्ल पक्ष षष्ठी - मकर संक्रांति • पूर्णिमा - छेर-छेरा |
माघ | • शुक्ल पक्ष पंचमी - बसंत पंचमी • पूर्णिमा - माघी पूर्णिमा • धेरसा पर्व - कोरवा जनजाति द्वारा मनाया जाता है। |
फाल्गुन / फागुन | • कृष्ण पक्ष त्रयोदशी - महाशिवरात्रि • पूर्णिमा - होलिका दहन • मेघनाथ पर्व - गोंड़ जनजाति के द्वारा फाल्गुन माह में मनाया जाता है। |
• विस्तृत वर्णन •
1. सरहुल
• क्षेत्र - सरगुजा
• जनजाति - उरांव
• अवसर - चैत्र पूर्णिमा
• विशेष - साल वृक्ष में फूल आने के अवसर पर सूर्यदेव (धर्मेश) और धरती माता के विवाह आयोजन पर।
2. माटी तिहार (बिजपुटनी)
• क्षेत्र - बस्तर अंचल में
• अवसर - चैत्र माह से आरंभ
• स्वरूप - पृथ्वी की पूजा, इस पर्व को बीजपुटनी भी कहते हैं।
• नोट - भोपालपट्टनम एवं बीजापुर में यह त्यौहार बैशाख या ज्येष्ठ माह में मनाया जाता है।
3. गोबर बोहरानी पर्व
यह पर्व सुकमा के छिंदगढ़ विकासखंड में मनाया जाता है। यह त्यौहार अच्छी फसल की कामना हेतु मनाई जाती है। यह शस्त्र पूजा एवं आखेट पर आधारित पर्व है।
4. चैतरई पर्व
यह पर्व परजा-धुरवा जनजाति द्वारा चैत्र माह के अवसर पर मनाया जाता है।
विशेष - जनश्रुति अनुसार इस पर्व में सुअर और मुर्गे की बलि चढ़ाई जाती है। इस पर्व में सुप्रसिद्ध धुरवा नृत्य किया जाता है।
5. चैत नवरात्रि
• अवसर - चैत्र शुक्ल प्रथमा से नवमीं तक
• उपासना - देवी शक्तियों का
• प्रमुख देवी - बम्लेश्वरी, दंतेश्वरी, चन्द्रहासिनी, विन्ध्यवासनी, बिलाईमाता, महामाया, अंगारमोती एवं गंगाई माता
• बिरही फिलोना - चैत्र शुक्ल प्रथमा को गेहूँ के दाने को विधि-विधान से भिगोया जाता है जिसे बिरही फिलोना कहते हैं।
• प्रथा - जंवारा खोंचकर मितान (मित्र) बनते हैं।
• वाद्ययंत्र - चांग एवं मांदर
6. रामनवमी
• तिथि - चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी के दिन (श्रीराम जन्मोत्सव)।
भगवान श्री राम चन्द्र जी के जन्म तिथि के अवसर पर छत्तीसगढ़ के लोग शादी के लिए बहुत शुभ मुहूर्त मानते है। रामनवमी चैत्र माह में नवरात्र के नौवें दिन मनाया जाता है। इस दिन जवारा एवं ज्योति कलश विसर्जन किया जाता है।
भगवान श्री राम चन्द्र जी के जन्म तिथि के अवसर पर छत्तीसगढ़ के लोग शादी के लिए बहुत शुभ मुहूर्त मानते है। रामनवमी चैत्र माह में नवरात्र के नौवें दिन मनाया जाता है। इस दिन जवारा एवं ज्योति कलश विसर्जन किया जाता है।
• मेला - डभरा (सक्ती) में रामनवमी के अवसर पर मेला लगता है।
7. बासी तिहार
• अवसर - यह अप्रैल माह में मनाया जाता है।
• जनजातियों में वर्ष का अंतिम पर्व बासी तिहार होता है।
8. अक्षय तृतीया (अक्ती)
• आयोजन - बैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया
• परम्परा - जल दान करने की परम्परा, इस दिवस ग्राम देवता की पूजा कर पलाश पत्ता (परसा पान) के दोने में धान भरकर माता देवाला में भेंट चढ़ाने की परंपरा है।
• विशेष - इस पर्व के दौरान पुतरा-पुतरी का विवाह करते हैं एवं अक्ती पर्व मनाया जाता है। मान्यतानुसार इस दिन किया गया शुभ कार्य अक्षय फल देता है।
9. अरवा तीज
• अवसर - बैशाख माह
• विशेष - इस दिन अविवाहित लड़कियों द्वारा आम की डाली से मण्डप बनाया जाता है और विवाह का स्वरूप लिये हुए विभिन्न रस्मों को निभाते हैं।
10. भीमा जतरा
• क्षेत्र - बस्तर एवं दंतेवाड़ा क्षेत्र में
• अवसर - ज्येष्ठ माह (जून-जुलाई में)
• विशेष - भीमा- भीमसेन को इन्द्रदेव के रूप में तथा ग्राम देव की पूजा की जाती है।
• अच्छी फसल, बारिश, कृषि के दौरान कोई विघ्न न हो, क्षेत्र में अच्छी खुशहाली हेतु कामना की जाती है।
• जनश्रुति अनुसार इस पर्व में बस्तर क्षेत्रांचल में अच्छी वर्षा की कामना हेतु मेंढ़का-मेंढ़की का विवाह किया जाता है।
• भीमा देव को खेतिहर देवता कहा जाता है।
11. गंगा दशहरा
• अवसर - ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी
• मान्यता - इस दिन गंगा माता स्वर्ग से पृथ्वी लोक में अवतरित हुई थी।
• आयोजन - बैकुंठपुर एवं चिरमिरी में मेले का (सरगुजा अंचल में)
• समर्पित - यह पर्व देवी गंगा को
• पूजा - यह पर्व जल स्त्रोतों एवं नदियों की सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक महत्ता को रेखांकित करती है। इस दिन महिला-पुरूष, बाल-बच्चे आसपास के तालाब-पोखरों के पास जाकर स्नान कर पूजा-पाठ करते हैं।
12. गोंचा पर्व
• क्षेत्र - बस्तर क्षेत्र में
• अवसर - आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया
• स्थान - जगदलपुर (बस्तर)
• पूजा - 'भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा'
• आराध्य देवी - गूंडाचा देवी
13. बीज बोहनी
• जनजाति - कोरवा
• अवसर - आषाढ़ माह
• विशेष - यह पर्व मुख्यतः कृषि के दौरान आयोजित की जाती है और कई क्षेत्रों में बीज बोने से पूर्व भी मनायी जाती है।
14. रथ द्वितीया (रथ यात्रा)
• अवसर - आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया
• पूजा - इस पर्व में काष्ठ से निर्मित भगवान जगन्नाथ की मूर्ति पूजा की जाती है।
• शोभायात्रा - भगवान जगन्नाथ, बलभद्र (बलराम), सुभद्रा
• प्रसाद - गजा मूंग
• प्रथा - गजा मूंग खिलाकर मितान बदने की प्रथा
15. हरेली
• संज्ञा - छत्तीसगढ़ अंचल में यह प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाता है।
• आयोजन - सावन / श्रावण अमावस्या
• उपनाम - गेंड़ी पर्व, इस दिन बच्चों के लिए गेंड़ी का निर्माण किया जाता है।
• द्वारा - मुख्य रूप से किसानों द्वारा।
• खेल - 1. नारियल फेंक प्रतियोगिता, 2. कबड्डी प्रतियोगिता, 3. गेंड़ी दौड प्रतियोगिता
• नृत्य - गेंड़ी नृत्य का आयोजन भी होता है।
• गीत - आये हरेली खपाये गेंड़ी
गेंड़ी चघे चघे देखे लोहारा भेंड़ी
• पूजाकार्य - 1. कुटकी देवी की पूजा-अर्चना की जाती है।, 2. गोरइंया देव (पशु के रक्षक देवता) का पूजा-अर्चना करते हैं। 3. किसान लौह उपकरण / कृषि उपकरणों, औजारों की पूजा करते हैं।
• मान्यताएं - इस दिन दुष्ट आत्माएं या बुरी शक्ति ज्यादा प्रभावशाली हो जाती है इस कारण इससे बचने के लिए निम्नलिखित कार्य करते हैं -
1. सवनाही - इस दिन महिलाएँ घर के मुख्य दीवार पर गोबर से चित्र बनाते हैं।, हरेली त्यौहार में घर के बाहर गोबर से प्रेत बनाया जाता है
2. इस दिन राउत अपने मालिकों के यहां घर के दरवाजे में गोंसाईज या नीम की पत्ती लगाते (खोंसते) हैं।
3. लोहार अपने मालिकों के द्वार में कील ठोंकते हैं।
• अन्य क्षेत्र - बस्तर क्षेत्र की जनजातियां इसे अमुस त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
• व्यंजन - गुड़ चीला।
16. नाग पंचमी
• अवसर - सावन शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन।
• आयोजन - दलहा पहाड़ (जांजगीर-चांपा) में मेला आयोजित किया जाता है।
• गायन - नगमत गीत
• खेल - कुश्ती खेल आयोजित की जाती है। बिरौछा खेल खेला जाता है।
17. कजरी त्यौहार
• तिथि - सावन शुक्ल नवमी से लेकर सावन पूर्णिमा तक।
• पूजा - देवी भगवती की
• उपासना - केवल संतानवती माताओं द्वारा
• कामना - अच्छी उपज की
• शुरूआत - इस पर्व से गेहूँ और जौ की बुवाई की शुरूआत होती है।
18. राखी तिहार (रक्षाबंधन)
• अवसर - सावन पूर्णिमा
• प्रतीक - भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।
19. भोजली पर्व
• आयोजन - भादो कृष्ण पक्ष प्रथम दिवस
• गीत - अहो देवी गंगा, लहर तुरंगा ।
हमर भोजली दाई के भीजे आठों अंगा ।।
इस गीत में गंगा का उल्लेख बार-बार आता है।
• कामना - भूमि की जल युक्त होने की कामना की जाती है।
• प्रतीक - भोजली पर्व प्रकृति पूजा और मित्रता का प्रतीक है। इस दिवस मितान परम्परा छत्तीसगढ़ में चिरकाल से चलते आ रही है। इसे भोजली, महाप्रसाद, गंगाजल व गुंईया के नाम से भी जाना जाता है।
• बीज - भोजली में पांच प्रकार के बीज (धान, गेहूँ, चना, उड़द तथा कोदो) बोये जाते हैं।
• विसर्जन - भोजली को श्रावण शुक्ल नवमी के दिवस बोकर भादो कृष्ण प्रथमा को विसर्जित किया जाता है। भोजली विसर्जन को छत्तीसगढ़ी में सरोना या उजेना कहते हैं।
20. बहुरा चौथ पर्व
• आयोजन - भादो कृष्ण चतुर्थी
• व्रत - माता अपने संतान की हितकामना के लिए व्रत रखती है।
• पूजा - सिंह एवं गाय-बछड़े की पूजा की जाती है।
21. हलषष्ठी (कमरछठ, हलछठ)
• अन्य नाम - खमरछठ, कमरछठ एवं हलछठ
• आयोजन - भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्ठी
• द्वारा - केवल संतानवती माताएं (न कि कुंवारी कन्या, सुहागिन स्त्रियां, विधवा महिलाए)
• उद्देश्य - इस पर्व में मातायें अपने पुत्र की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं।
• संबंध - महाभारत से
• सेवन - पसहर चावल (बिना हल की जुती हुई भूमि पर उगने वाला अनाज)
22. जन्माष्टमी (आठे कन्हैया)
• अन्य नाम - आठे कन्हैया पर्व (भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी (आठे) को होने के कारण)
• आयोजन - कृष्ण पक्ष अष्टमी
• मेला - रायगढ़ के गौरीशंकर मंदिर में विशेष मेला का आयोजन किया जाता है।
• नृत्य - कदम्ब या किसी वृक्ष के नीचे राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर इसके चारों ओर नृत्य करते हैं।
• विशेष - रसोईघर की दीवारों पर आठे कन्हैया का चित्र बनाकर पूजा-अर्चना और फलाहार करते हैं।
जन्माष्टमी के दूसरे दिवस कृष्ण की बाल लीला व दही लूट का उत्सव मनाया जाता है।
दहिकाँदो करमा और रास के संकरित प्रारूप है।
23. पोला
• आयोजन - भाद्रपद अमावस्या
• व्यंजन - ठेठरी (पार्वती का प्रतीक) व खुरमी (शिव का प्रतीक)
• मान्यता - पोला के दिन धान की फसल में गभोट आती अर्थात् गर्भधारण करना
• प्रतियोगिता - इस दिवस बैल दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
• विशेष - इस पर्व में मिट्टी के बैलों की पूजा पोरा-जांता नामक मिट्टी के
बर्तन में व्यंजन रखकर की जाती है।
इस दिन किसान बैलों को सजाते हैं।
इस दिन गेंड़ी का विसर्जन किया जाता है।
24. हरितालिका (तीज, तीजा)
• आयोजन - भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया
• कार्यक्रम - इस पर्व में विवाहित महिलाएं अपने मायके जाकर पति के दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। स्त्रियां अपने मायके में केले के पत्तों से मंडप बनाकर उसमें गौरी शंकर की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करती है।
• विशेष - तीजा के पहले दिन महिलायें करूभात खाती हैं फिर अगले दिन निर्जला उपवास रहती हैं।
25. धनकुल
• जनजाति - हल्बा और भतरा
• अवसर - भादो शुक्ल पक्ष तृतीया (तीजा पर्व के दौरान)
• गायन की भाषा - हल्बी
• वाद्य यंत्र - धनकुल (मटकी, बांस की खपच्ची, सूपा व धनुष से निर्मित)
• विशेष - महिलाएं अपने पति की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए गौरी या लक्ष्मी की आराधना करते हुए गुरूमाय से धनकुल कथा या जगार गीत सुनती है। इसे तीजा जगार के नाम से भी जानते हैं।
26. गणेश चतुर्थी
• अवसर - भादो शुक्ल पक्ष चतुर्थी
• विशेष - इस दिन रायगढ़ के रामलीला मैदान में चक्रधर समारोह का आयोजन होता है जिसका शुभारंभ राजा भूपदेव के द्वारा किया गया था। जिसे गणेश उत्सव के नाम से जाना जाता था। शासन द्वारा राजकीय महोत्सव के रूप में पुनःप्रारंभ 1985 में किया गया। 2023 में आयोजित चक्रधर समारोह 39 वां क्रम का था।
27. नवाखानी
• जनजाति - गोंड़
• अवसर - भादो माह में शुक्ल पक्ष से पूर्णिमा तक नई फसल आने पर
• विशेष - अपने पूर्वजों को नई फसल व मदिरा अर्पित करते हैं।
28. बेटाजूतिया (जीवित्पुत्रिका व्रत)
• तिथि - भादो माह में कृष्णा पक्ष आठे के दिन (पितर पाख)
• व्रत - महिलाएं अपने पुत्रों की मंगलकामना लेकर यह व्रत रखती हैं।
• विशेष - इस दिन चिटचिटा (एक पौधा) की दातुन करती हैं। सास के जीवित रहते तक बहू को बेटा जूतिया उपवास करना आवश्यक नहीं होता किन्तु सास के मरते ही बेटा जूतिया का व्रत निभाना पड़ता है।
29. जोत - जंवारा पर्व
• वर्ष में दो बार कुंवार एवं चैत्र मास में नवरात्रि (जंवारा पर्व) का आयोजन किया जाता है।
• नवरात्रि के प्रथम दिन माता के मंदिर में ज्योति स्थापित कर जंवारा बोया जाता है।
30. भाईजूतिया
• अवसर - दुर्गा अष्टमी के दिन
• उपवास - बहनें अपने भाई की कल्याण कामना लेकर निर्जला उपवास रखती हैं।
• विशेष - मूढ़र घर में या पुजहाई कुरिया में खांड़ा (तलवार) थाप कर जूतिया चढ़ाती है।
31. दशहरा पर्व / विजया दशमी
• आयोजन - कुवांर शुक्ल पक्ष दशमी
• विशेष - रावण पर राम की विजय के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है।
32. शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा - मान्यतानुसार इस दिन आसमान से अमृत बरसता है। जिसको खीर के माध्यम से ग्रहण किया जाता है।33. कोरा पर्व
• जनजाति - कोरवा
• अवसर - आश्विन माह (सितम्बर माह में)
• विशेष - आदिवासियों द्वारा कुटकी गोंदली की फसल काटने के बाद अर्थात् कृषि के दौरान आयोजित होता है।
34. दीपावली
• अवसर - कार्तिक अमावस्या
• विशेष - इस अवसर पर बस्तर क्षेत्र में डंडारी नृत्य का आयोजन होता है। दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन को छत्तीसगढ़ में सुरहोती के नाम से भी जानते हैं। दीपावली के अवसर पर छत्तीसगढ़ में गोबर से चित्रांकन की परम्परा है।
35. दियारी पर्व
• जनजाति - माड़िया
• क्षेत्र - बस्तर क्षेत्र
• अवसर - दीपावली के समय
• अन्य नाम - दिहाड़ी/पंडुम
• कार्यक्रम - 1. इस दिन पशुओं को विशेष व्यंजन खिलाया जाता है। 2. फसल की पूजा की जाती है।
36. गौरा - गौरी पर्व
• जनजाति - गोंड़
• अवसर - दीपावली के समय, यह पर्व कार्तिक अमावस्या के 5-7 दिन पूर्व प्रारंभ कर दिया जाता है। जिसमें फूल कुचरना, करसा परघना, अखरा, डड़ैया जैसे रस्म निभाये जाते हैं।
• विशेष - यह पर्व शिव-पार्वती अर्थात् गौरा-गौरी के विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
37. गोवर्धन पूजा
• अवसर - कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथमा
• विशेष - इस दिन गोबर की विशेष आकृतियाँ बनाकर उसे पशुओं के खुर से कुचलवाया जाता है। इस प्रकार इस गोबर को तिलक के रूप में लगाया जाता है। छत्तीसगढ़ में इस दिन को गौठान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा 2019 में किया गया है।
38. मातर त्यौहार
• आयोजन - कार्तिक माह में (गोवर्धन पूजा के बाद)
• प्रचलन - राउत/यादव जाति में
• विशेष - राउत जाति, खोडहर देव (लकड़ी से निर्मित) की पूजा करते हैं। इस दिन राउत समुदाय के लोग पशुधन को सोहाई बांधते हैं और दोहा पढ़कर नृत्य करते हैं। सोहाई मोर पंख और पलाश से निर्मित धागे के समान संरचना होती है।
39. आंवला पूजा
• अवसर - कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमीं (आंवला नवमीं)
• विशेष - इस दिन ग्रामीण स्तर के लोगों के द्वारा आंवला पेड़ के नीचे सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है।
40. देवउठनी एकादशी/जेठउनी
• आयोजन - कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी /प्रबोधिनी एकादशी
• विशेष - इस पर्व में तुलसी की पूजा होती है। जिसमें गन्ने से मण्डप का आकार बनाकर पूजा की जाती है एकादशी को छत्तीसगढ़ में छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गन्ने की पूजा करने के बाद पटाखे फोड़े जाते है एवं मिठाई के साथ-साथ गन्ने का भी सेवन करते है।
41. छेरछेरा
• आयोजन - पौष पूर्णिमा
• गीत - छेरछेरा कोठी के धान ला हेरते हेरा
• फसल - यह धान फसल घर आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
• विशेष - इस पर्व के दौरान बच्चे घर-घर जाकर धान एकत्र करते हैं। इस पर्व में लड़कियां सुआ नृत्य भी करती हैं। इस दिन युवकों की टोलियां घर-घर जाकर डंडा नृत्य भी करते हैं।
42. बड़े भजन का रामनामी मेला
• अवसर - पौष/पूस माह के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिवस
• क्षेत्र - सारंगढ़, पामगढ़, बिलाईगढ़ एवं कसडोल इत्यादि।
• द्वारा - रामनामी सम्प्रदाय
• अवधि - 03 दिवस तक
43. छेरता पर्व
• अर्थ - छेरता का अर्थ धरती होता है
• जनजाति - गोंड़, भूमिका, पनका
• तिथि - पौष पूर्णिमा को
• विशेष - कृषक इसी दिन लेखा और हिसाब-किताब का बन्दोबस्त करते हैं।
44. धेरसा पर्व
• जनजाति - कोरवा
• अवसर - माघ माह (जनवरी-फरवरी माह में)
• विशेष - यह पर्व जनजातियों द्वारा सरसों, दलहन आदि फसल काटने के बाद मनायी जाती है अर्थात् कृषि के दौरान आयोजित होता है।
45. मेघनाथ पर्व
• जनजाति - गोंड़, कोरकू
• माह - फागुन माह में होली के दूसरे दिन
• क्षेत्र - प्रमुखतः बस्तर क्षेत्र में
• विशेष - गोंड़ जनजाति द्वारा मेघनाथ की स्मृति स्वरूप एक स्तंभ स्थापित कर नृत्य किया जाता है।
46. होली पर्व
• होलिका दहन - फाल्गुन शुक्ल पक्ष चौदस
• होली पर्व - फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
• मान्यता - यह त्यौहार मुख्य रूप से हिरण्यकश्यप की बहन, दुष्ट होलिका के दहन की याद में मनाया जाता है, जिसने अपने भतीजे प्रह्लाद को आग में जलाने का प्रयास किया था।
• छत्तीसगढ़ के जनजातीय पर्व
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