जिला दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा का गठन बस्तर जिले से पृथकीकरण के पश्चात 25 मई 1998
को हुआ। जिले के वर्ष 2007 में हुए विभाजन के फलस्वरूप बीजापुर अलग जिले के रूप
में पृथक हुआ और सुकमा वर्ष 2012 में अलग जिले के रूप में। दंतेवाड़ा भारत की
सबसे पुरानी बसाहटों में से एक है। दंतेवाड़ा का नाम इस क्षेत्र की आराध्य देवी
माँ दंतेश्वरी के नाम से पड़ा। अनुश्रुति है कि दक्ष यज्ञ के दौरान गिरे सती के
बावन अंगों में से एक यहाँ गिरा और इस शक्तिपीठ का निर्माण स्थापित हुआ।
दंतेवाड़ा जिले का सामान्य परिचय
25 मई 1998
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जिला मुख्यालय
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दंतेवाड़ा
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मातृ जिला
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सीमावर्ती जिले (3)
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तहसील (6)
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1. गीदम, 2. दंतेवाड़ा, 3. कटेकल्याण, 4. बारसुर, 5. कुआकोंडा, 6. बड़े बचेली |
विकासखण्ड (4)
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1. गीदम, 2. दंतेवाड़, 3. कटेकल्याण, 4. कुआकोंडा
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नगर पालिका परिषद (3)
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1. दंतेवाड़ा, 2. बड़े बचेली, 3. किरंदुल
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विधानसभा क्षेत्र (1)
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1. दंतेवाड़ा (ST)
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राष्ट्रीय राजमार्ग
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NH 163 A (गीदम-दंतेवाड़ा)
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पिनकोड
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494449 (दंतेवाड़ा)
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आधिकारिक वेबसाइट
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• मिट्टियां -
• प्रमुखतः लाल दोमट मिट्टी पाई जाती है।
• खनिज -
1. लौह अयस्क - बैलाडीला की पहाड़ी
2. टिन भंडारण क्षेत्र - कटेकल्याण, बचेली
3. कोरण्डम
• दंतेवाड़ा जिला लौह अयस्क व टिन के उत्पादन एवं भंडारण में अग्रणी है।
• औद्यौगिक क्षेत्र-
1. टेकनार
• जवांगा -
• एजुकेशन सिटी (गीदम विकासखंड)
• अगस्त 2017 में इसका नामकरण पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नाम पर
किया गया।
• बैलाडीला की पहाड़ी -
• इसी पहाड़ी के कारण दंतेवाड़ा जिला लौह अयस्क के उत्पादन में प्रथम
स्थान पर है।
• यहां कुल 14 लौह निक्षेप हैं।
• लौह निक्षेप पर्वतों की ऊपरी भागों में पाई जाती है जिसे आकाश नगर कहते
हैं।
• 1968 से NMDC द्वारा खनन प्रारंभ किया गया।
• एशिया का सबसे बड़ा लौह खदान बैलाडीला की पहाड़ी है।
• हेमेटाइट किस्म के लौह अयस्क की प्राप्ति यहां से उत्खनित लौह अयस्क का
निर्यात, जापान को विशाखापट्टनम बंदरगाह से किया जा रहा है।
• बैलाडीला पर प्रदेश की दूसरी तथा दक्षिण छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी
नंदीराज (1210 मी) स्थित है।
• बैलाडीला भारत का सबसे बड़ा मशीनीकृत खान है।
• जलप्रपात -
1. सूरतगढ़ जलप्रपात
2. मेदनीघूमर जलप्रपात
3. फुलपाड़ जलप्रपात
• बोधघाट परियोजना -
• बोधघाट परियोजना इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित है।
• प्रस्तावित सिंचाई क्षमता 366580 हेक्टेयर है।
• इस बांध से सुकमा, बीजापुर एवं दंतेवाड़ा लाभान्वित होंगे।
दंतेवाड़ा जिले का इतिहास
वर्तमान दंंतेवाड़ा जिला 1998 मे अस्थित्व मे आया। इससे पूर्व यह जिला बस्तर
जिला का एक तहसील क्षेत्र था इस कारण इस जिले मे बस्तर के समृद्ध आदिवासी
सभ्यता तथा जीवन शैली सहित बस्तर के सभी विलक्षण गुण मौजूद है। बस्तर
क्षेत्र के दक्षिण भाग मे स्थित होने के कारण इस जिले का नाम दक्षिण बस्तर
दंंतेवाड़ा रखा गया।
दुर्गम भौगोलिक संरचना के चलते यह क्षेत्र बाहरी दुनिया के पहुँच से बाहर
रहने के बाद भी जिलेे के कुछ भागों मे बहुतायत मे उपलब्ध पुरातात्विक
अवशेष तथा शिथिल मूर्तियांं, चरित्रकारों को तथा पुरातात्विक विशेषज्ञों
से अपनी आयु व्यक्त कर क्षेत्र का गौरवशाली अतीत को खोजने की अपील करते
है।
सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ रामायण के अनुसार भगवान श्री राम ने अपना
वनवास का समय इस क्षेत्र मे व्यतीत किया। इस तरह यह क्षेत्र उन दिनों मे
जो दण्डकारण्य कहा जाता था, श्री राम का कर्म भूमि रहा।
सिंधुघाटी (सिंधु नदी के तट) के रहवासियों का एक समूह जब प्राग
द्र्विड़ियों से 1500 ईसा पूर्व मे अलग हुआ और समूह के कुछ सदस्य बस्तर
क्षेत्र पहुँच गए, जिनका जिक्र संंस्कृत साहित्य मे द्रविड़ बोलने वाले
“नाग” के नाम से वर्णित है। छिंदक नाग आधुनिक गोंड प्रजाति के पूर्वज है
ऐसी मान्यता है।
72 ईसा पूर्व से 200 ईसवींं तक बस्तर शातवाहन राजाओं से शाषित इस क्षेत्र
मे नल राजवंश से पहले बौद्ध एवं जैन धर्मों का भी विकास होने के सुराख
मिलते है।
ईसा पूर्व 600 से 1324 ईसवींं तक नल (350-760 ईसवींं) तथा नाग (760-1324
ईसवींं) मे इस क्षेत्र मे आदिवासी गणतंंत्र कायम था, जो उल्लेखनीय है।
बाद के समय मे यह पद्दति धीरे-धीरे क्षीण होता गया, चालुक्य राजवंश
(1324-1774 ईसवींं) के समय महान गोंड सभ्यता को नष्ट करते हुए इस
व्यवस्था का पतन अत्यधिक तेजी से हुआ।
बाहरी राजाओं के पदार्पण से इस क्षेत्र मे सामंतवाद का नीव रखा गया, जो
लगातार अगले 5 शताब्दियों के कार्यकाल के लिए विकास मे जड़ता तथा अवरोध
उत्पन्न किया था।
दंतेवाड़ा जिले में पर्यटन स्थल
बारसूर
• प्राचीन नाम - चक्रकोट या भ्रमरकूट
• यह छिंदकनागवंशियों की प्रारंभिक राजधानी थी।
• यहाँ काले ग्रेनाइट से निर्मित नंदी बैल पाए जाते हैं।
• मंदिर -
1. मामा - भांजा मंदिर (गणेश व नरसिंहनाथ की प्रतिमा)
2. बत्तीसा मंदिर (बत्तीस स्तंभों से निर्मित मंदिर)
3. चंद्रादित्य मंदिर
4. गणेश जी की विशाल मूर्ति
5. प्राचीन चंद्रादित्य समुद्र नामक सरोवर बारसूर में स्थित है।
दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा
• निर्माण - 14 वीं सदी
• निर्माणकर्ता - अन्नमदेव (काकतीयवंशी शासक)
• यह मंदिर डंकिनी - शंखिनी नदी के संगम पर निर्मित है।
• ब्रिटिश काल में इस मंदिर में नरबलि प्रथा के लिए माड़िया जनजाति की
संस्कृति में हस्तक्षेप हेतु अंग्रेजों के खिलाफ मेरिया विद्रोह
(1842-1863) हुआ था।
• संगम स्थल पर एक विशाल पद चिन्ह है जिसे भैरवबाबा का पद चिन्ह मानते
हैं। जिसके दूसरे किनारे पर भैरवबाबा का मंदिर है तथा पास में चूड़ी
डोंगरी है।
• छत्तीसगढ़ी में लिखित प्राचीनतम शिलालेख मंदिर प्रांगण में स्थित है।
ढोलकल गणेश प्रतिमा
• गणेश प्रतिमा छिंदकनागवंशियों द्वारा बनाया गया।
समलूर
• यह दंतेवाड़ा के गीदम में स्थित है।
• यह एक आदिवासी गांव है।
• यहाँ एक विशाल तालाब है जिसके समीप बलुआ पत्थर निर्मित शिवलिंग है।
यह शिव मंदिर शिल्पकला का अद्भुत नमूना है। मूर्ति के मध्य तथा ऊपर भाग
को घुमाने से अपने अक्ष पर मूर्ति चारों ओर घूम जाती है। ऐसा कहा जाता
है कि बारसुर बाणासूर की राजधानी थी। वे प्रति दिवस स्नान करने समलूर
के तालाब में आया करते थे तत्पश्चात् वे शिव मंदिर में जाकर शिव की
पूजा किया करते थे।
गामावाड़ा - महापाषाणीय स्मारक
• गामावाड़ा नामक ग्राम में पत्थर के बड़े - बड़े स्तंभ निर्मित हैं।
• इन स्मारक स्तंभों का निर्माण प्राचीन समय में यहाँ के स्थानीय
निवासियों द्वारा मृत व्यक्तियों के स्मृति स्वरूप किया गया था।
अन्य पर्यटन स्थल
1. तुलार गुफा
2. बड़े तुमनार का मंदिर
केन्द्र संरक्षित स्मारक
1. बारसूर - चंद्रादित्य मंदिर, गणेश प्रतिमा एवं मामा भांजा का मंदिर।
2. दंतेश्वरी मंदिर में रखी प्राचीन प्रतिमाएं।
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