छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास | Evolution of Chhattisgarhi Language | Chhattisgarhi Grammar

छत्तीसगढ़ी का विकास भी अन्य आधुनिक भाषाओं की तरह ही प्राचीन आर्य भाषा से ही हुआ है। आर्यों की प्राचीन भाषा समय के साथ परिवर्तित हुई और उससे हिन्दी तथा उसकी उप भाषाओं का विकास हुआ। विभिन्न उपभाषाओं के मिलने से भारत की अनेकानेक बोलियों का जन्म हुआ जिनमें से छत्तीसगढ़ी भी एक थी।

Devlopment of CG Language

भाषाओं तथा बोलियों की इस विकास यात्रा को निम्नानुसार समझा जा सकता है -

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (1500 ई.पू. 500 ई.पू.)

इस युग के भारतीय आर्यों के भाषाओं के उदाहरण हमें प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में मिलते हैं। प्राचीन युग के अंतर्गत वैदिक और लौकिक दोनों भाग आते हैं। संस्कृत शिष्ट समाज के परस्पर विचार - विनिमय की भाषा थी और वह यह काम कई सदी तक करती रही, संस्कृत का प्रथम शिलालेख 150 ई. रूद्रदामन का गिरनार शिलालेख है तब से प्रायः 12 वीं सदी तक इसको राजदरवारों से विशेष प्रश्रय मिलता रहा। बौद्ध धर्म के उदय के साथ ही स्थानीय बोलियों को महत्व मिला। भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार को प्रभावी बनाने के लिये जन बोलियों को चुना जिसमें पाली सर्वोपरि थी। पाली में जन भाषा और साहित्यिक भाषा का मिश्रित रूप मिलता है।

मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल (500 ई.पू. - 1000 ई.)

मध्य काल की प्राचीन भाषा का प्रतिनिधि उदाहरण अशोक की धर्म - लिपियों और पाली ग्रंथों में मिलता है। धीरे - धीरे मध्य काल में प्रादेशिक भिन्नता बढ़ी, जिससे अलग - अलग प्राकृत भाषाओं का विकास हुआ। संस्कृत ग्रंथों में भी विशेषतः नाटकों में इन प्राकृतों का प्रयोग मिलता है। निम्न वर्ग के व्यक्तियों और सामान्य जनता द्वारा इनका प्रयोग हुआ है। इन प्राकृत भाषाओं में शौरसेनी, मागधी, अर्द्धमागधी, महाराष्ट्री, पैशाची आदि प्रमुख रही। साहित्य में प्रयुक्त होने पर व्याकरणाचार्यों ने प्राकृत भाषाओं को कठिन, अस्वाभाविक नियमों से बाँध दिया किन्तु जिन बोलियों के आधार पर उनकी रचना हुई, वे व्याकरण के नियमों से नहीं बाँधी जा सकी। व्याकरणाचार्यों ने लोगों की इन नवीन बोलियों को अपभ्रंश अर्थात् बिगड़ी हुई भाषा नाम दिया।

अपभ्रंश - मध्यकालीन भारतीय भाषा का चरम विकास अपभ्रंश से हुआ। आधुनिक आर्य भाषा जैसे - हिन्दी, मराठी, पंजाबी, उड़िया आदि की उत्पत्ति इन्हीं अपभ्रंशों से हुई है। एक प्रकार से ये अपभ्रंश भाषाएँ प्राकृत भाषाओं और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच की कड़ियाँ है।

मुख्यतः अपभ्रंश के सात रूप प्रचलित थे, जिनसे आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ।

अपभ्रंश
आधुनिक भारतीय भाषा
मागधी अपभ्रंश
बिहारी, उड़िया, बंगाली, असमिया
अर्धमागधी अपभ्रंश
पूर्वी हिन्दी, बघेली, अवधी, छत्तीसगढ़ी
शौरसेनी अपभ्रंश
पश्चिमी हिन्दी, , राजस्थानी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली
पैशाची अपभ्रंश
लहंदा, पंजाबी
ब्राचड़ अपभ्रंश
सिन्धी
खस अपभ्रंश
पहाड़ी कुमाँयूनी, गढ़वाली
महाराष्ट्री अपभ्रंश
मराठी

आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल (1000 ई. से वर्तमान तक)

भारतीय आर्य भाषा के वर्तमान युग का प्रारंभ प्रायः 1000 ई. से माना जाता है जिनमें महत्व की दृष्टि से आर्य परिवार की भाषाएँ सर्वोपरि है। इनके बोलने वालों की संख्या भारत में सबसे अधिक है।

ब्राचड़, पैशाची, शौरसेन, महाराष्ट्री, अर्द्धमागधी आदि अपभ्रंश भाषाओं से क्रमशः आधुनिक सिंधी, लहंदा, पंजाबी, मराठी, हिन्दी, अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, पूर्वी - हिंदी, बिहारी, बांग्ला, उड़िया भाषाओं को जन्म दिया।

शौरसेनी प्राकृत अपभ्रंश से हिन्दी की पश्चिमी शाखा का जन्म हुआ। इसकी दो प्रधान बोलियाँ है - एक ब्रज व दूसरी खड़ी बोली। हिन्दी की दूसरी शाखा है पूर्वी हिन्दी जिसका विकास अर्द्धमागधी से हुआ है। इसकी तीन प्रमुख बोलियाँ हैं - अवधी, बघेली व छत्तीसगढ़ी। अवधी में साहित्यिक परंपरा रही है। तुलसी व जायसी ने इसमें अमर काव्य लिखे हैं। बघेली और छत्तीसगढ़ी में प्राचीन समय में उल्लेखनीय साहित्य सृजन नहीं हुआ, जिसकी क्षतिपूर्ति अब हो रही है।

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