कोण्डागांव जिला भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक जिला है। कोण्डागांव जिला बस्तर
जिले से अलग होकर 01 जनवरी 2012 को अस्तित्व में आया। कोण्डागांव जिले का
मुख्यालय कोण्डागांव है। कोण्डागांव जिले का प्राचीन नाम कोंडानार था। यह जिला
ज्यादातर अपने घंटी धातु शिल्प और अन्य कला रूपों के लिए प्रसिद्ध है जो बस्तर
के आदिवासी के मूल निवासी हैं। इस क्षेत्र में उत्पादित विभिन्न प्रकार के
स्वदेशी शिल्प के कारण छत्तीसगढ़ के शिल्प शहर के रूप में भी जाना जाता है।
कोण्डागांव जिले का सामान्य परिचय
01 जनवरी 2012
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जिला मुख्यालय
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कोण्डागांव
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मातृ जिला
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सीमावर्ती जिले (5)
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सीमावर्ती राज्य (1)
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1. ओडिशा
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तहसील (5)
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1. केशकाल, 2. बड़े राजपुर, 3. फरसगांव, 4. कोण्डागांव, 5. माकड़ी
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विकासखण्ड (5)
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1. केशकाल, 2. बड़े राजपुर, 3. फरसगांव, 4. कोण्डागांव, 5. माकड़ी
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नगर पालिका परिषद (1)
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1. कोण्डागांव
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विधानसभा क्षेत्र (2)
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1. केशकाल (ST), 2. फरसगांव (ST)
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राष्ट्रीय राजमार्ग
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NH 130 D (कोण्डागांव-नारायणपुर)
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पिनकोड
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494226 (कोण्डागांव)
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आधिकारिक वेबसाइट
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• खनिज -
1. केशकाल में बॉक्साड का भण्डार है।
कोण्डागांव जिले का इतिहास
कोण्डागांव के अतीत में प्रचलित है, कि इसका प्राचीन नाम कोण्डानार था। बताया
जाता है कि मरार लोग गोलेड गाड़ी में जा रहे थे, तब कोण्डागांव के वर्तमान
गांधी चौक के पास पुराने नारायणपुर रोड से आते हुए कंद की लताओं में गाड़ी फंस
गयी। उन्हे मजबूरी में रात को वहीं विश्राम करना पड़ा। बताया जाता है कि उनके
प्रमुख को स्वप्न आया। स्वप्न में देवी ने उन्हें यहीं बसने का निर्देष दिया।
उन्होंने उस स्थान की भूमि को अत्यंत उपजाऊ देखकर देवी के निर्देशानुसार यहीं
बसना उचित समझा। उस समय इसे कान्दानार (कंद की लता आधार पर) प्रचलित किया गया,
जो कालान्तर कोण्डानार बन गया।
इसी बीच बस्तर रियासत के एक अधिकारी ने हनुमान मंदिर में वरिष्ठ जनों की एक
बैठक में इसे कोण्डानार के स्थान पर कोण्डागांव रखना ज्यादा उचित बताया। उस समय
का पुराना मार्ग पुराना नारायणपुर मार्ग ही था। अत: मरारों के मुख्य परिवारों
की बसाहट उसी मार्ग के दोनों ओर हुई। यही पुराना कोण्डागांव था।सन 1905 में
केशकाल घाटी के निर्माण के बाद मुख्य सड़क बनी, जो गांधी चौक के पास पुराने
नारायणपुर मार्ग से मिलती है। नया मार्ग बनने पर उसके दोनों ओर नई बसाहट होने
लगी। रोजगारी पारा नए मार्ग के दोनों ओर बसा। केशकाल घाटी की सड़क का निर्माण
होने के बाद केशकाल का क्षेत्र राठौर परिवार को मालगुजारी में दिया गया। वह
परिवार तथा इनसे संबंधित लोग बाद में कोण्डागांव मुख्य मार्ग पर बसे।
मुख्य सड़क धमतरी से जगदलपुर को जाती थी। इस प्रकार कोण्डागांव की मुख्य सड़क
बस्तर की राजधानी जगदलपुर से जुड़ गयी। 1980 के दशक में इसे राष्ट्रीय राजमार्ग
क्रमांक 43 घोषित किया गया है। अभी हाल मे 2010 में यही राष्ट्रीय राजमार्ग
क्रमांक 30 घोषित किया गया है। रियासत काल में कोण्डागांव, सेडोंगर तहसील के
अंतर्गत था तथा उसका पुलिस स्टेशन भी बड़े डोंगर में था। बाद में तहसील
मुख्यालय कोण्डागांव 1943 में आया।
यहां बसने वाली सबसे पुराने मरार, कोष्टा तथा अनुसूचित जाति, जनजाति में
गाण्डा, घसिया, हल्बा आदि थे। कोण्डागांव की बसाहट अच्छी होने पर यहां 1930 के
आसपास प्राथमिक शाला बनी और कुछ वर्षों बाद एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की
स्थापना हुई। सन 1953 में यहां मैटि्क की परीक्षा केन्द्र भी बन गया। 1955 में
पूर्वी बंगाल के व्यकितयों की बसाहट के लिए प्रशासनिक भवन तथा कर्मचारियों के
आवास बनना शुरू हुआ। केन्द्रीय पुनर्वास मंत्रालय के अन्तर्गत दण्डाकारण्य
प्रोजेक्ट बना जो उड़ीसा से बस्तर के इस क्षेत्र तक विस्तृत था। 1958 में यहां
बिजली आई जिसका उदघाटन हाई स्कूल के प्राचार्य ने किया था।
1965 मे ही कोण्डागांव राजस्व अनुविभाग घोषित किया गया। कोण्डागांव रियासत काल
में पूर्व में हटिया फिर शामपुर तथा बाद में सोनाबाल परगना के अंतर्गत लिया
जाता था। कोण्डागांव का विकास क्रमश: तेजी से हुआ और कस्बे से शहर बना। पहले यह
आदिम जाति पंचायत के अंतर्गत था तत्पष्चात 1975 में नगरपालिका परिषद् की
स्थापना हुई, नगर में विधाओं में प्रगति आई है जिससे बेलमेटल शिल्प, लौह शिल्प,
प्रस्तर शिल्प, मृतिका शिल्प लोक कला चित्र, काश्ठ, बांस, कौड़ी शिल्प और बुनकर
शिल्प का यथेश्ट विकास हुआ। बेलमेटल शिल्प से बस्तर को विश्व स्तर पर ख्याति
दिलाने का श्रेय कोण्डागांव के कलाकारों को जाता है। सांस्कृतिक क्षेत्र में
सांस्कृतिक संस्थाएं स्थापित हुई एंव साहित्य संगीत, अभिनय कला के विकास का पथ
प्रशस्त हुआ। इसके अतिरिक्त शासन की विभिन्न योजनाओं को भी इसके माध्यम से
प्रचार मिला। वर्ष 1984 में शासन द्वारा एक महाविधालय की स्थापना की गई। 15
अगस्त 2011 को छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्रीजी ने इसके विकास को देखते हुए
इसे राजस्व जिला घोषित किया। निश्चय ही जिला निर्माण से कोण्डागांव जिला
छत्तीसगढ़ का एक आर्दश जिला बनेगा एवं ख्याति अर्जित करेगा।
कोण्डागांव जिले में पर्यटन स्थल
केशकाल घाटी
केशकाल छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा जल विभाजक पर्वत है। जिसके कारण महानदी का उद्गम
दक्षिण में होने के बावजूद उसका प्रवाह उत्तर की ओर होता है।
नामकरण - केशलू नामक बहादुर व्यक्ति के याद में इसका नामकरण किया
गया है जो शेर से लड़ते - लड़ते मारा गया था।
• केशकाल घाटी में कुल 12 मोड़ है।
• केशकाल घाटी को बस्तर के प्रवेश द्वार के नाम से जाना जाता है।
• इस घाटी पर तेलिन माता मंदिर स्थित है। (तेलिन घाटी)
• केशकाल घाटी महानदी व गोदावरी अपवाह तंत्र का जल विभाजक है।
• इसे फूलों के घाटी की नाम से भी जानी जाती है।
• केशकाल घाट बस्तर के पठार एवं महानदी बेसिन को अलग करता है।
गढ़धनौरा
• लौहयुगीन पाषाण स्तंभ के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
• प्राचीन टीले (ईटों के) धनौरा ग्राम के पास किला स्थित होने के कारण इसे
गढ़धनौरा कहते हैं।
• इसी के पास एक नाला है जिसके किनारे - किनारे वराहराज ने शिव व विष्णु के 22
मंदिरों का निर्माण करवाया था।
कोण्डागांव
• कोण्डागांव को "शिल्पग्राम" की संज्ञा दी गई है।
• शिल्पग्राम एवं घड़वा शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है।
• धातु शिल्प / घड़वा कला के कलाकार - जयदेव बघेल की जन्मस्थली है।
• कोंडागांव नारंगी नदी के तट पर स्थित है।
• सर्वाधिक लिंगानुपात (2011 की जनगणना अनुसार 27 जिलों में)
• सहकारी मक्का प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना की गई है।
रामायणकालीन स्थल
• जटायुशिला
• स्थान- बोरगांव के पास
• विशेष - जनश्रुति अनुसार भगवान राम और जटायु की मुलाकात यहीं हुई थी।
अन्य पर्यटन स्थल
1. अड़ेगा - नलवंशीय शासक वराहराज के स्वर्ण सिक्के प्राप्त हुये
हैं।
2. माझीनगढ़ - देवी मंदिर स्थित है।
3. भोंगापाल - यह कोण्डागांव जिला में स्थित बौद्ध धर्म से संबंधित
स्थल है।
4. कोपाबेड़ा - शिव मंदिर है।
• नारियल विकास बोर्ड (स्थापना 1987)
5. आलोर - लिंगवेश्वरी देवी मंदिर।
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