जिला रायगढ़ एवं बलौदाबाजार-भाटापारा के विभाजन के माध्यम से जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ 3 सितंबर 2022 को अस्तित्व में आई। यह छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर पूर्वी दिशा में स्थित है। जिले का मुख्यालय सारंगढ़ में है। सारंगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से 201 किमी दूर है। जिले का निकटतम हवाई अड्डा स्वामी विवेकानन्द हवाई अड्डा रायपुर है, जो लगभग 192 किमी दूर है। छ.ग. राज्य के स्वतंत्रता आंदोलन में सारंगढ़ क्षेत्र में किसान आंदोलन एवं जंगल सत्याग्रह हुए हैं। सारंगढ़ क्षेत्र 14 रियासतों में से एक था। यहां के गोड शासक शासन करते थे जिसमें भव्य महल गिरीविलास पैलेस सुन्दरता के मामले में अनमोल है।
सारंगढ़ - बिलाईगढ़ जिले का सामान्य परिचय
03 सितंबर 2022 | |
जिला मुख्यालय | सारंगढ़ |
मातृ जिला | |
सीमावर्ती जिले (5) | |
सीमावर्ती राज्य (1) | ओडिशा |
तहसील (6) | 1. सारंगढ़, 2. बरमकेला, 3. सरिया, 4. बिलाईगढ़, 5. भटगांव, 6. सरसींवा |
विकासखंड (3) | 1. सारंगढ़, 2. बिलाईगढ़, 3. बरमकेला |
नगर पालिका परिषद (1) | 1. सारंगढ़ |
विधानसभा क्षेत्र (2) | 1.सारंगढ़ (SC), 2. बिलाईगढ़ (SC) |
प्रमुख जनजाति | सौंरा, बिंझवार |
राष्ट्रीय राजमार्ग | NH 130(B) (रायपुर - सारंगढ़ मार्ग), NH 153 (सरायपाली - रायगढ़ मार्ग) |
पिनकोड | 496445 (सारंगढ़) |
आधिकारिक वेबसाइट |
• खनिज -
1. चूना पत्थर क्षेत्र - सारंगढ़, जोगनीपाली, कटंगपाली, टिमरलगा, गुड़ेली
2. डोलोमाइट क्षेत्र - कटंगपाली
• जंगल सत्याग्रह -
1. सारंगढ़ सत्याग्रह, 1930
2. नेतृत्वकर्ता - धनीराम, जगतराम
• अभ्यारण्य -
1. गोमर्डा (Gomarada)
■ जिला - सारंगढ़ - बिलाईगढ़
■ स्थापना - 1975
■ क्षेत्रफल - 278 वर्ग किमी
■ वन्यजीव - सोनकुत्ता, वनभैंसा
■ विशेषताएं - सोनकुत्ता पाया जाता है।
• जलप्रपात -
1. माडुसिल्ली जलप्रपात (बरमकेला)
• अन्य परियोजना -
1. किंकारी परियोजना - किंकारी नाला में (बरमकेला)
2. पुटका परियोजना - पुटका नाला में (सारंगढ़)
• कॉलेज / विश्वविद्यालय -
1. डॉ.शक्रजीत नायक शासकीय महाविद्यालय, बरमकेला।
2. शासकीय लोचन प्रसाद पाण्डेय महाविद्यालय, सारंगढ़।
3. आरएनएम कॉलेज, भटगांव।
4. शहीद वीर नारायण सिंह महाविद्यालय, बिलाईगढ़।
सारंगढ़ - बिलाईगढ़ जिले का इतिहास
जिला रायगढ़ एवं बलौदाबाजार-भाटापारा के विभाजन के माध्यम से जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ 03 सितंबर 2022 को अस्तित्व में आई। छत्तीसगढ़ राज्य के स्वतंत्रता आंदोलन में सारंगढ़ क्षेत्र में किसान आंदोलन एवं जंगल सत्याग्रह हुए हैं। सारंगढ़ क्षेत्र 14 रियासतों में से एक था। यहां के गोड शासक शासन करते थे जिसमें भव्य महल गिरीविलास पैलेस सुन्दरता के मामले में अनमोल है। आजादी के समय यह मध्य प्रांत का हिस्सा था। 03 सितंबर 2022 को जिला सारंगढ़ - बिलाईगढ़ जिले रायगढ़ एवं बलौदाबाजार-भाटापारा से पृथक होने के बाद अस्तित्व में आया।
सारंगढ़ का नामकरण - सारंग शब्द के अनेक अर्थ पर्यायवाची है जिनमें एक अर्थ बांस भी होता है यहाॅ इसकी प्रचुरता के कारण सारंगढ़ कहलाता है। गढ़ का अर्थ किला या किले नुमा भूमि है। पंड़ित लोचन प्रसाद पाण्डे-इसका अर्थ चिमय मृग के बहुतामय से मिलते है से लिया। डाॅ. विनय कुमार पाठक सारंग पक्षी की बहुलता से नामकरण बतलाते है।
रियासत कालीन इतिहास-सारंगढ़ रतनपुर रियासत का शुरु में हिस्सा रहा बाद में 18 गढ़ सम्बलपुर के अधीन रहा। रतनपुर के राजा नरसिंह देव के नरेन्द्र साय ( गोड़ वंश )को 84 गाॅव का सारंगढ़ परगना दिया और दीवान की उपाधि दी। वे सर्वप्रथम सारंगढ़ के निकट ग्राम गाताडीह में आकर कुछ समय तक रहें, फिर उन्होंने सारंगढ़ नगर को बसाया। कालांतर में वे सारंगढ़ के जमींनदार बने। भटगाॅव, बिलाईगढ़ अलग रियासतों की जमींनदारी रही। डोंगरीपाली सरिया बरमकेला का क्षेत्र सारंगढ़ के अधीन अलग जमीनदारी रहीं। यहाॅ के राजा कल्याण साय (गोड़ वंश) सन् 1736 से 1777 तक राज्य किये जिन्हे मराठा शासक ने राजा की पद्वी से नवाजा गया। अंग्रेजी सेना के विरुद्व या द्वारा पारित वाद को सुनने व निर्णय का अधिकार दिया। राजा जवाहर को बहादुर की उपाधि भी प्रदान की गई क्षेत्र में अशांति व विद्रोह को दबाया।
सारंगढ़ क्षेत्र के प्रमुख शासक -
1. कल्याण साय को मराठा रघुजी भोसले ने राजा घोषित किया।
2. विश्वनाथ साय को सम्बलपुर राजा जैतसिंह ने राजगद्दी में सहयोग पर सरिया परगना भेंट किया गया।
इलियट को समाधि – विश्वनाथ साय ने पोस्टल कारिडोर की खोज/निर्माण करने आए तथा फुलझर (सरायपाली) में डेंगू मलेरिया से मृत एलेक्जेंडर इलियट की समाधि बनाने हेतु (सालर, सारंगढ) में भूखण्ड प्रदान किया। जो खण्डहर के रूप में लात के किनारे भगन्नावशेष है। वर्षों तक उसकी देखभाल की गई व उनके रिश्तेदार आते रहे।
3. राजा संग्राम सिंह – 1857 में ब्रिटिश शासन का सहयोग किया एवं विद्रोह दबाने के लिए विद्रोही नेता कमल सिंह को बंदी बनाकर ब्रिटिश सरकार के सुपुर्द किया।
4. डाॅ. जवाहर सिंह - 03 जून 1918 को ब्रिटिश सरकार ने ‘राजा बहादुर‘ एवं 03 जून 1934 को (सी. आई. ई.) की उपाधि दी। अंग्रेजी शासन के द्वारा ‘‘रूलिंग चीफ‘‘ के उपाधि पाने वाले राजा थे। ऐसा उपाधि व शक्ति जयपुर के महाराजा के पास भी नहीं थी।
5. राजा नरेश चंद्र सिंह - 01 जनवरी 1948 को सारंगढ़ रियासत का भारत संघ में विलय हुए जिस पर राजा नरेश चन्द्र सिंह ने सहर्ष हस्ताक्षर किये। रूस्तम जी बतलाते हैं कि ये एक ऐसे राजा थे जिन्हें राज्य जाने की दुःख की अपेक्षा भारत संघ के निर्माण की खुशी थी। मंत्री (1967) से मुख्यमंत्री 13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969 तक रहकर(13 दिन) और अंत में समाज सेवा में रूचि रखकर राजनैतिक जीवन से सन्यास ले लिए एवं जीवन पर्यन्त समाज सेवा एवं आदिवासियों के विकास के लिए संकल्पित एवं आजीवन भारत के आदिवासी समाज के अध्यक्ष रहें। इसकी पुत्री कमला देवी सिंह व रजनीगंधा देवी सिंह विधायक एवं कैबिनेट मंत्री रहे। माननीय पुष्पा देवी सिंह 03 बार सांसद रहीं। मेनका सिंह (डाॅक्टर) समाजसेवी है।
सारंगढ़ - बिलाईगढ़ जिले में पर्यटन स्थल
■ सारंगढ़ - गिरीविलास महल, गाकडी, सालर (इलियट का कब्रगाह)
■ पुजारीपाली (शशिनगर) - इसका निर्माण 7-8वीं शताब्दी में लाल ईंटों से निर्मित किया गया। यहां केंवटीन मंदिर (शिव का मंदिर है) स्थित है।
■ बिलाईगढ़ - बिबली का किला, किलबिली माता का मंदिर
सारंगढ़ - बिलाईगढ़ जिले में विशेष
• पाषाण काल – बम्हनदेई की सुरंगनुमा गुफा में पाषाण कालीन इत्यादि मानवों द्वारा निर्मित भित्ती चित्र, शैलचित्र के नष्टप्राय अवशेष (सारंगढ़ से 5 कि.मी.)
• सातवाहन कालीन- शून्य वाद के प्रतिपादक एवं महायान बौद्व भिक्षु नार्गाजुन के आश्रम सिरपुर के समान शैल कलाकृति सिरोली डोगरी (सारंगढ़ से 05 कि.मी.) में छत (सिलिंग) पर पैरों के निशान देही भग्नावशेष है। जिससे कुछ समय यहाॅ नार्गाजुन के दल के विश्राम की अनुमानित है। कलचुरी मराठा- कौश्लेश्वरी मंदिर कोसीर।
• मौर्यकाल- मौर्यकालीन व गुप्तकालीन सिक्के तथा शिल्पकला के अवशेष (पुजेरीपाली) ग्राम पंचायत - कान्दुरपाली व अन्य सारंगढ़ जिले के क्षेत्र में मिले है।
• द्वितीय विश्वयुद्व व सारंगढ़- सारंगढ़ की हवाई पट्टी जिल्दी पट्टी द्वितीय विश्व युद्व की स्मारक है यहाॅ अमेरिकी बमवर्षक विमान ईधन भस्में को उतरा करते थे। यह देश के सर्वोत्तम हवाई पट्टी में तकनीकी पैमाने पर थी।
• गिरी विलास पैलेस - राजपरिवार का पैतृक निवास स्थान (महल) रहा है, जो आज भी ऐतिहासिक दर्शनीय है।
• सर्वश्रेष्ठ गोल्फ कोर्स- वर्तमान खेलभाठा का मैदान रियासत काल में छत्तीसगढ़ मध्यप्रांत का श्रेष्ठ गोल्फ कोर्स होने से अंग्रेज अधिकारी यहाॅ खेलने आते थे।
• भारत के सुप्रसिद्व संत व समाज सुधारक- सतनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास जी की ज्ञान स्थली सारंगढ़ जिला – सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (निकट कोसीर ग्राम) को माना जाता है। मनखे-मनखे एक समान के संदेशवाहक की भूमि है।
• महत्वपूर्ण संस्कृति पर्व दशहरा गढ़ विच्छेदन- शारदीय नवरात्र उपरांत दशहरा के त्यौहारमें सारंगढ़ का ऐतिहासिक गढ़ विच्छेदन की परम्परा है। इसमें लगभग 10 हजार से 20 हजार लोग स्थल पर मौजूद होते हैं। इसमें मिट्टी के शंकुनुमा आकृति में राजमहल की मिट्टी से (वीरभूमि) एक इंची आकृति बनती है। जिसमें प्रतिभागी चढ़ते, फिसलते गिरते व फिर से चढ़ते है। जो प्रतिभागी सबसे पहले उपर चढ़ने में सफल होता है, उन्हें नगद राशि एवं शील्ड से सम्मानित किया जाता है। रियासत कालीन चली आ रही परंपरा का निर्वहन आज भी राज परिवार के द्वारा किया जाता है (वर्तमान में पुष्पा देवी सिंह है) पहले बहादुरों को राजा की सेना में भर्ती किया जाता था।
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