छत्तीसगढ़ राज्य लोक कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अलग ही छाप छोड़ती
है। छत्तीसगढ़ के लोककला के अंतर्गत लोकगीत, लोकनृत्य, लोकनाट्य एवं
छत्तीसगढ़ी त्यौहार आभूषण एवं व्यंजन आते है। राज्य में कार्यक्रम, प्रमुख
अवसरों शादी-ब्याह के अवसरों में गायन-वादन के लिए कई प्रकार के वाद्ययंत्रों
का प्रयोग किया जाता है। इन अवसरों पर इस्तेमाल किये जाने वाले वाद्ययंत्र का
वर्णन निनलिखित है। छत्तीसगढ़ के प्रमुख वाद्ययंत्र इस प्रकार से है -
1. दफड़ा / चांग - यह लकड़ी के गोलाकार व्यास में चमड़े से बनाया
जाता है जिसे वादक द्वारा कंधे पर लटकाकर बजाया जाता है।
2. नगाड़ा - होली के अवसर पर फाग गीतों के गायन में प्रयुक्त
वाद्ययंत्र जिसे लकड़ी के डंडे द्वारा बजाया जाता है।
3. झांझ व मंजीरा - यह एक बड़े स्वरूप का मंजीरा होता है जिसे
मांदर के साथ बजाया जाता है।
4. गुदुम - इस वाद्ययंत्र में बारहसिंगा का सींग लगा होता है इसलिए
इसे सींग बाजा भी कहते हैं। यह गंड़वा बाजा साज का प्रमुख वाद्ययंत्र है।
5. ताशा - प्रदेश के मुस्लिम समाज में प्रचलित प्रसिद्ध
वाद्ययंत्र।
6. अलगोजा - बांस की बनी एक विशेष संरचना होता है जो बांसुरीनुमा
होता है तथा इसके दो मुख होते हैं जिसमें एक साथ हवा फूंक कर बजाया जाता है।
7. मोहरी - प्रादेशिक अंचल में शहनाई के प्रचलित रूप को मोहरी कहते
हैं जो गंड़वा बाजा का एक अभिन्न अंग है जिसे फूंककर बजाया जाता है। इसका
प्रयोग मुख्यतः विवाह के अवसरों पर किया जाता है।
8. खड़ताल - पंडवानी में प्रयोग होने वाला प्रमुख वाद्ययंत्र जिसे
हाथ के अंगुलियों में फंसा कर बजाया जाता है।
9. मांदर - लकड़ी के खोखले भाग में दोनों तरफ बकरे का चमड़ा चढ़ाकर
बनाया जाता है जिसे मांदर कहते हैं। मांदर का प्रयोग मुख्य रूप से जनजाति गीतों
एवं नृत्यों के साथ ही, मातासेवा गीत के समय किया जाता है।
10. बीन - इस वाद्ययंत्र का प्रयोग सपेरों के द्वारा साँप पकड़ने
के लिए तथा गांव - गांव जाकर तमाशा दिखाने के समय किया जाता है।
11. ढोलक - इस वाद्ययंत्र का प्रयोग धार्मिक कार्यों जैसे -
मंदिरों में भजन - कीर्तन के समय किया जाता है।
12. बांसुरी - खोखले बांस का बना हुआ वाद्ययंत्र है जिसे मुँह
द्वारा फूंककर बजाया जाता है। लगभग सभी गीलों में बजाये जाने वाला वाद्ययंत्र
है।
13. इकतारा - इकतारा का प्रयोग प्रदेश में भरथरी गीत के समय किया
जाता है।
14. टिमटिमी - यह एक लकड़ी के खोखला भाग में ऊपर चमड़े का परत
बांधकर बनाया जाता है। इस वाद्ययंत्र को होली तथा विवाह के अवसर पर प्रयोग
होता है।
15. खंजरी - इसका वादन थाप और हाथ को हिलाकर किया जाता है। खंजरी
टिन के गोलाकार पतरे के एक ओर चमड़ा या पतली झिल्ली मढ़कर बनाया जाता है।
इसके घेरे में 3-4 जोड़ी झांझ लगी होती है।
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